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श्री पाली तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री नवलखा पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल 8 पाली गाँव के मध्यस्थ नवलखा रोड़ में । इसे नवलखा मन्दिर कहते हैं ।
प्राचीनता ® इसके प्राचीन नाम पल्लिका व पल्ली है । श्री साँडेराव तीर्थ के इतिहास से ज्ञात होता है कि वि. सं. 969 में साँडेराव के मन्दिर के जीर्णोद्धार प्रसंगे प्रतिष्ठा महोत्सव पर प्रकांड विद्वान आचार्य श्री । यशोभद्र सूरीश्वरजी द्वारा मांत्रिक शक्ति से पाली से घी । मँगवाया गया था, जिसका व्यापारी को पता नहीं लग सका । पश्चात् साँडेराव के श्रावकगण घी की लागत के रुपयों का भुगतान करने आये । परन्तु भाग्यशाली
व्यापारी ने रुपये लेने से इनकार किया व उक्त शुभ काम के लिए अपनी अमूल्य लक्ष्मी का सदुपयोग होने के कारण अति ही प्रसन्नता पूर्वक अपने को कृतार्थ समझने लगा । घी के मूल्य की राशि नव लाख रुपयों से यहीं मन्दिर बनवाने की योजना बनाकर इस मन्दिर का निर्माण किया गया जो नवलखा मन्दिर कहलाने लगा । तत्पश्चात् इस मन्दिर का जीर्णोद्धार वि. सं. 1144 में होने का उल्लेख है। मन्दिर में कई प्रतिमाओं पर सं. 1144 सं. 1178 वि सं. 1201 के लेखों में इस मन्दिर में मूलनायक श्री महावीर भगवान रहने का उल्लेख है । वि. सं. 1686 में हुए पुनः जीर्णोद्धार के समय मूलनायक श्री महावीर स्वामी के स्थान पर श्री पार्श्वनाथ भगवान की यह प्रतिमा प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है । प्रतिमाजी पर भी वि. सं. 1686 का लेख उत्कीर्ण है।
श्री नवलखा पार्श्वनाथ मन्दिर - पाली
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