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श्री हथुण्डी तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, रक्त प्रवाल वर्ण, 135 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल बीजापुर गाँव से लगभग 3 कि. मी. दूर, छटायुक्त सुरम्य पहाड़ियों के बीच ।
प्राचीनता ॐ शास्त्रों में इसके नाम हस्तिकुण्डी, हाथिउन्डी, हस्तकुण्डिका आदि आते हैं । मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज द्वारा रचित 'श्री पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा इतिहास' में महावीर भगवान के इस मन्दिर का निर्माण वि. सं. 370 में श्री वीरदेव श्रेष्ठी द्वारा होकर आचार्य श्री सिद्धसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठित हुए का उल्लेख है । राजा हरिवर्धन के पुत्र विदग्धराजने महान प्रभावक आचार्य श्री यशोभद्रसूरिजी के शिष्य आचार्य श्री बलिभद्रसरिजी, (इन्हें वासदेवाचार्य व केशवसूरिजी भी कहते थे) से प्रतिबोध पाकर जैन धर्म अंगीकार किया था । वि. सं. 973 के लगभग इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर प्रतिष्ठा करवायी थी । राजा विदग्धराज के वंशज राजा मम्मटराज, धवलराज,बालप्रसाद आदि राजा भी जैन धर्म के
अनुयायी थे । उन्होंने भी धर्म प्रचार व प्रसार के लिए काफी योगदान दिया था व मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर भेंट-पत्र प्रदान किये थे ।
वि. सं. 1053 में श्री शान्त्याचार्यजी के सुहस्ते यहाँ श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित होने का उल्लेख आता है । वि. सं. 1335 में पुनः रातामहावीर भगवान की प्रतिमा यहाँ रहने का उल्लेख है । सं. 1335 में सेवाड़ी के श्रावकों द्वारा यहाँ श्री राता महावीर भगवान के मन्दिर में ध्वजा चढ़ाने का उल्लेख है । लगभग वि. सं. 1345 में इसका नाम हथुण्डी पड़ गया था, ऐसा उल्लेख मिलता है। बीचकाल में श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा क्यों बदली गयी व वही श्री राता महावीर भगवान की प्रतिमा क्यों व कब पुनः प्रतिष्ठित की गयी उसका उल्लेख नहीं । यहाँ का पुनः जीर्णोद्धार वि. सं. 2006 में होकर पंजाब केशरी युगवीर आचार्य श्रीमद् विजयवल्लभ सूरिश्वरजी महाराज के सुहस्ते अति उल्लास व विराट महोत्सव के साथ प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हुआ । प्रतिमा वही प्राचीन चौथी शताब्दी की अभी भी विद्यमान है ।
विशिष्टता भगवान श्री महावीर की प्रतिमा के नीचे सिंह का लांछन है । उसका मुख हाथी का है । हो सकता है इसी कारण इस नगरी का नाम
श्री राता महावीर जिनालय-हथुण्डी
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