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एक उत्कृष्ट नमूना विश्व के सामने पेश किया,जिस के दर्शन करता है, तब वह अपने आपको भूल जाता है दर्शन कर,विश्व के शिल्पशास्त्रविशारद,विद्वान व व ऐसा अनुभव करता है, जैसे सचमुच ही वह किसी आबाल-वृद्ध-वनिता आज भी प्रफुल्लित व मुग्ध होते दिव्यलोक में आ पहुँचा है ।
___ भारतीय शिल्पकला का एक श्रेष्ठ व बेमिसाल नमूना जब धरणाशाह ने विभिन्न शिल्पकारों से अपने यहाँ नजर आता है । भारतीय वास्तु-विद्या कितनी विचारों के अनुकूल नक्शे मंगाये, तब अनेंको शिल्पकारों बढ़ी-चढ़ी थी व इस देश के कलाकार कैसे सिद्धहस्त ने अपने-अपने नक्शे पेश किये । उस समय धरणाशाह थे, इसका यह तीर्थ प्रत्यक्ष प्रमाण है । यह मन्दिर के दिल की बात समझकर प्रभुभक्त व आत्मसंतोषी इतना विशाल और ऊँचा होने पर भी इसमें, नजर कलाकार, मुंडारा निवासी श्री दीपा ने भी अपना नक्शा आती सप्रमाणता, मोती, पन्ने, हीरे, पुखराज और पेश किया, जो धरणाशाह के दिल में बस गया । फिर माणक की तरह जगह-जगह बिखरी हुई शिल्प-समृद्धि, तो शीध्र ही शुभ दिन को, मन्दिर -निर्माण का कार्य विविध प्रकार की कोरणी से सुशोभित अनेकानेक तोरण प्रारंभ किया गया । कहा जाता है, धरणाशाह की और उन्नत स्तंभ, आकाश में निर्निराली छटा बिखेरते भावना सात मंजिला मन्दिर बनवाने की थी । परन्तु शिखरों की विविधता, कला की यह विपुल समृद्धि मानों अपनी वृद्धावस्था व आयु का निकट में ही अन्त मुखरित बनकर यात्रि का मंत्र-मुग्ध बना देती है । समझकर तीन मंजिल का कार्य होते ही अपने
इस मन्दिर के चार द्वार हैं । मन्दिर के मूल गर्भगृह मार्गदर्शक, युगप्रधान आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरीश्वरजी
में भगवान आदिनाथ की बहत्तर इंच (180 सें. से प्रतिष्ठा के लिए विनती की। आचार्य श्री ने अपने
मी.) जितनी विशाल चारों दिशाओं में चार प्रतिमाएँ 500 साधु-समुदाय के साथ पधारकर वि. सं. 1496 बिराजमान हैं । दूसरे व तीसरे मंजिल में भी इसी में अपने सुहस्ते प्रतिष्ठा सम्पन्न करवायी । इस मन्दिर ।
तरह चार-चार जिन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं । इसी लिए का नाम 'धरण विहार' रखा गया, जिसे
इसे चतुर्मुख-जिनप्रसाद भी कहते हैं । त्रैलोक्य-दीपकप्रासाद' व त्रिभुवनविहार' भी कहते हैं ।
___76 शिखरबंद छोटी देव कुलिकाएँ, रंगमंडप तथा 'नलिनी-गुल्मविमान' के नाम से भी यह मन्दिर
शिखरों से मंडित चार बड़ी देवकुलिकाएँ और चारों विख्यात है । किंवदन्ति के अनुसार इस मन्दिर के
दिशाओं में चार महाधर प्रासाद-इस प्रकार मन्दिर के निर्माण कार्य में 99 लाख रूपये लगे थे।
चारों तरफ कुल चौरासी देवकुलिकाएँ है । मानों ये अन्य मन्दिर वर्तमान में यहाँ पर इस मख्य
संसारी आत्मा को जीवों की चौरासी लाख योनियों से मन्दिर के अतिरिक्त श्री नेमिनाथ भगवान, श्री पार्श्वनाथ
व्याप्त भवसागर को पार करके मुक्त होने की प्रेरणा भगवान, व सूर्य मन्दिर हैं । ये भी सुन्दर व दर्शनीय देती हैं । हैं । यहाँ से करीब एक कि. मी. दूरी पर श्री चक्रेश्वरी
____ चार दिशाओं में आए चार विशाल व उन्नत मेघनाद माता का मन्दिर है ।
मंडपों का तो जोड़ मिलना ही मुश्किल है। झीनी-झीनी कला और सौन्दर्य राणकपुर, प्राकृतिक सौन्दर्य ।
सजीव कोरणी से सुशोभित लगभग 40 फुट ऊँचे के साथ कला व भक्ति का संगम स्थान है । इस ढंग स्तंभ. बीच-बीच में मोतियों की मालार्यों के समान का विशिष्ट संगम-स्थान कम जगह देखने मिलेगा ।
लटकते सुन्दर तोरण, चारों ओर जड़ी हुई देवियों की __ यहाँ प्रकृति का सहज सौन्दर्य एवं मानव-निर्मित सजीव पुतलियों और उभरी हुई कोरणी से समृद्ध कला-सौन्दर्य का सुभग समन्वय सध जाता है । अतः तोलक से शोभित गुंबज दर्शक को मुग्ध कर देते हैं। यह कैसे सुन्दर एवं अपूर्व योग बनकर मानव के चित्त शिखरों के गुंबज में और अन्य छतों में भी कलाविज्ञ को आलह्यादित करता हुआ, प्रभुभक्ति की ओर उसे और भक्तिशील शिल्पियों की मुलायम छेनियों ने कई कैसे खींच लेता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह पुरातन कथाप्रसंगों को जीवंत किया है, कई आकृतियों तीर्थस्थल है ।
को मानों वाचा प्रदान की है और कई नये-नये शिल्प मानव जब इस अपूर्व प्राकृतिक दृश्य के साथ । खड़े किये हैं । इन सब कलाकृतियों का मर्म हृदयंगम स्वर्गलोक के देवविमानतुल्य इस कलात्मक मन्दिर के होने पर भावुक जन मानों, स्थल-काल आदि को भूल
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