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भारनि-up-6-२..-सम्भारोप विसरणागबनाकारण दिसम्माननादा
गनलालजसूजपासालदसतेस्त्रकारितामा म.मवाल्मलनीसनेप्रतिकापासापितमिरणिय
ऊपीयवालेन्द्रशस्वय
वाम्हान्सने प्रतिपाचार्यकातीरोमानिविभूषिता लोककल्यामचक्तः
श्री आदीश्वर भगवान-खण्डगिरि
कलिंग के कोने-कोने को जैन धर्म की ज्योति से भगवान महावीर ने प्रकाशमान कर दिया था । भगवान महावीर का कुमारी पर्वत पर भी समवसरण रचा गया था-ऐसा उल्लेख है । इस प्रकार भगवान श्री पार्श्वनाथ के काल में जैन-धर्म का यहाँ विशेष प्रचार हुआ व भगवान महावीर के काल में यहाँ के जन-जन का धर्म हो गया था ।
महाराज श्रेणिक (बिंबसार) द्वारा इस कुमारी-पर्वत पर मन्दिर बनवाकर, श्री आदीश्वर भगवान की स्वर्णमयी प्रतिमा गणधर श्री सुधर्मा-स्वामी के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाने का एवं साधु साध्वियों के लिए अनेकों गुफाएँ बनवाने का उल्लेख है ।
श्री श्रेणिक महाराजा के पुत्र श्री कुणिक द्वारा भी। इनपर्वतों पर पाँच गुफाएँ निर्मित करवाने का उल्लेख है ।
भगवान महावीर के 60 वर्षों के पश्चात् नरेश महापद्मनन्द ने इस प्रदेश पर आक्रमण किया व विजय पाकर आदीश्वर भगवान की स्वर्णमयी प्रतिमा को अपनी राजधानी पाटलीपुत्र ले गया । यह जिन प्रतिमा कलिंग में राष्ट्रीय प्रतिमा के रूप में मान्य थी । इसलिए प्रतिमा यहाँ से जाने के कारण कलिंग की जनता के दिल में भारी आघात पहुँचा ।
कुछ समय बाद कलिंग को पुनः स्वतंत्रता प्राप्त हुई। भगवान महावीर के निर्माण के 244 वर्षों पश्चात् मगध सम्राट अशोक ने कलिंग पर पुनः आक्रमण किया, जिसमें लाखों मनुष्यों का संहार हुआ। युद्ध लगभग दो वर्षों तक जारी रहा । युद्ध में सम्राट अशोक की जीत हुई । लेकिन इस युद्ध में हुए नरसंहार व बरबादी के कारण उसे ग्लानि हो गयी व प्रायश्चित् स्वरूप जनकल्याण के अनेकों कार्य किये ।
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