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________________ वैदिक लोग इसे अनार्थ देश कहते थे । प्राचीन काल श्री खण्डगिरि - उदयगिरि तीर्थ में ये खण्डगिरि, उदयगिरि पर्वत, कुमारगिरि व कुमारीगिरि नाम से प्रसिद्ध थे । तीर्थाधिराज * श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत वर्ण श्री पार्श्वनाथ भगवान के काल के पश्चात् यहाँ के (दि. मन्दिर) । राजा करकुण्ड रहे जो कट्टर जैन-धर्म के अनुयायी थे। तीर्थ स्थल * भुवनेश्वर से 6 कि. मी. दूर 37 इनका राज्य समस्त अंग, बंग, कलिंग, चेर, चोल, मीटर ऊँचे खण्डगिरि पहाड़ पर । पाण्ड्य, आन्ध्र आदि देशों में फैला हुआ था । चेर, प्राचीनता * यहाँ का इतिहास श्री आदीश्वर चाल, पाण्ड्य राजाआ का इन्ह चोल, पाण्ड्य राजाओं को इन्होंने अपनी साहसिकता से भगवान के समय से प्रारम्भ होता है । आदीश्वर झुकाया था । परन्तु जब उन्हें पता लगा कि इन भगवान ने भारत भमि को 52 जनपदों में विभाजित राजाओं के मुकुट में जिनेन्द्र भगवान का चिह्व लगा है किया। उनमें यह भी एक था । यह कलिंग देश तो तुरन्त ही गले से लगाया था । स्वधर्मी के प्रति कहलाता था । भगवान श्री ऋषभदेव, श्री पार्श्वनाथ कितनी उदारता थी उनमें ! भगवान व श्री महावीर भगवान का यहाँ अनेकों बार _ "उत्तराध्ययनसूत्र" में पंचाल के राजा द्विमुख, विदेह विहार हुआ था । भगवान श्री पार्श्वनाथ का तो इस के राजा नेमि, गांधार के शासक नग्नजित व कलिंग देश में अत्यन्त प्रभाव रहा । वैदिक यज्ञयागादि में के सम्राट करकण्डु का उल्लेख है । सम्राट करकण्डु विश्वास रखनेवालों को यहाँ जाने तक का निषेध था। भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य भी माने जाते हैं। श्री आदीश्वर भगवान मन्दिर-खण्डगिरि
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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