SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गोविन्दपुर आज का डलहौसी स्क्वायर, हेस्टिंग और गवर्नर बनाया था । सन् 1880 में घोड़ों से खींची फोर्ट विलियम हैं । कालिकाता आज का कालीघाट व जानेवाली प्रथम ट्राम गाड़ी यहीं से प्रारम्भ हुई । और भवानीपुर है । इन तीनों ग्रामों को मिलाकर जोब भी आधुनिक सुविधा वाले कई कार्य यहाँ से प्रारम्भ चारनक नामक अंग्रेज ने कलकत्ता शहर की नींव डाली हुए । जो अल्प समय में ही आधुनिक सुविधा संपन्न नगर अन्य मन्दिर * इसके अतिरिक्त शहर में कुल 8 बना । इस शहर का कलकत्ता नाम कब व कैसे पड़ा। श्वेताम्बर मन्दिर हैं, जिनमें यहाँ का सबसे प्राचीन इसके बारे में अलग-अलग मत हैं । इस नगर को श्री जैन श्वे. पंचायती मन्दिर है जो बड़ा मन्दिर के नाम सुसम्पन्न बनाने व व्यापार का मुख्य केन्द्र बनाने में विख्यात है व 3 दिगम्बर मन्दिर हैं। इनके अलावा एक जैन श्रेष्ठियों का मुख्य हाथ रहा है । उन्होंने जन भव्य दादावाड़ी व कुछ घर देरासर भी हैं। कल्याण के भी कार्यों में हर वक्त भाग कला और सौन्दर्य * इस मन्दिर में कोई भी लिया है । ऐसी जगह नहीं जहाँ कारीगर ने कला का दिग्दर्शन यह कलात्मक मन्दिर लाला कालकादासजी के पुत्र नहीं करवाया हो । इस मन्दिर की शिल्पकला का रायबहादुर बद्रीदासजी ने अपनी मातु श्री खुशालकुंवर वर्णन करने के लिए कोई उपयुक्त शब्द नहीं, जिसमें वर्णित किया जा सके । मन्दिर निर्माता ने इस से प्रेरणा पाकर बनाना प्रारम्भ किया । कलात्मक मन्दिर का निर्माण करके जैन धर्म का ही अब वे ऐसी प्रतिमा की खोज में थे जो प्राचीन, नहीं, बंगाल का गौरव बढ़ाया है । सर्वांग सुन्दर, व अपने आपमें अनूठी हो । उनपर प्रभु मार्ग दर्शन * कलकत्ता के हावड़ा स्टेशन से इस की कृपा हुई । एक महात्मा ने एक अद्भुत प्रतिमा मन्दिर की दूरी 5 कि. मी. है । मन्दिर तक बस व आगरा के रोशन मोहल्ले के मन्दिर के भूमि गृह में कार जा सकती है । रहने का संकेत दिया व महात्मा अदृश्य हो गये । सुविधाएँ * ठहरने के लिये सर्वसुविधायुक्त निम्न संकेतिक स्थान से यह प्रतिमा प्राप्त हुई जो संघवी जैन धर्मशालाएँ है । बड़ा शहर होने के कारण चन्द्रपाल द्वारा सतरहवीं सदी में प्रतिष्ठित थीं। इस आवागमन ज्यादा रहता है । अतः जाने वालों के लिये प्रतिमा को यहाँ लाकर बड़े ही उल्लास व हर्ष पूर्वक पहले से इन्तजाम करके जाना सुविधाजनक होगा । ई. सं. 1867 में आचार्य श्री कल्याण सूरीश्वरजी के 1. यहाँ का सबसे प्राचीन श्वे. मन्दिर श्री जैन श्वे. सुहस्ते प्रतिष्ठित की गई । अभी भी इसकी देखभाल पंचायती मन्दिर जो बड़ा मन्दिर के नाम से विख्यात इनके कुटुम्बी करते हैं । है । इसके संलग्न में एक विश्राम गृह 5 कमरों का विशिष्टता * इस भव्य मन्दिर की निर्माण शैली है जिसमें ठरहने की व्यवस्था है । अद्भुत व अति ही कलात्मक है जो यहाँ की मुख्य 139, काटन स्ट्रीट, कलकत्ता - 700 007. विशेषता है । विभिन्न वेत्ताओं ने यहाँ की कला के बारे फोन : 033-2395949. में अलग-अलग ढंग से व्याख्या की है । इसको बंगाल 2. इस शीतलनाथ मन्दिर के पास 20 कमरे 2 की सुन्दरता के नाम से भी संबोधित किया है। हॉल व एक बड़े हॉल के साथ सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को तुलापट्टी के बड़े मन्दिर है । भोजनशाला प्रारंभ होने वाली है, परन्तु पूर्व से वरघोडा प्रारम्भ होकर यहाँ विसर्जन होता है, जो सूचना पर अभी भी इंतजाम हो सकता है । पता अति ही रोचक व दर्शनीय रहता है । इस दिन का श्री जैन जौहरी संस्थान 63/10, गौरी बाड़ी लेन, वरघोड़ा भारत भर में सर्वोत्तम माना जाता है । सरकार कलकत्ता- 700004. फोन : 033-5554187. की तरफ से भी सारी सुविधाएँ प्रदान की जाती है । 3. श्री दिगम्बर जैन भवन, 10-A चितपुर स्पार, इस मन्दिर के सामने स्थित दादावाड़ी में स्वामिवात्सल्य कलकत्ता - 700007. का आयोजन किया जाता है । पेढ़ी * श्री बद्रीदास जैन श्वेताम्बर मन्दिर पेढ़ी, ____ कलकत्ता शहर भी अपने आपमें कुछ विशिष्टता 36, बद्रीदास टेम्पल स्ट्रीट, माणकतला (शामबाजार) रखता है, जैसे ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सन् 1767 में पोस्ट : कलकत्ता - 700 004. सर क्लाइव को इसी शहर में अंग्रेज राज्य का प्रथम प्रान्त : पश्चिम बंगाल, 90
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy