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सम्पादकीय देव-गुरु-धर्म की अशीम कृपा से इस कल्पतरुसम तीर्थ-दर्शन पावन ग्रंथ का जटिल कार्य प्रारंभ से अंत तक करने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुवा था जो सात वर्ष की लम्बी अवधि में उन्हीं की कृपा से सुसम्पन्न हो पाया था । इस कार्य की परिकल्पना आदि का विवरण मेने प्रथम आवृति की भूमिका में दिया था जिसे पुनः इस ग्रंथ में ज्यों का त्यों पाठकों की जानकारी हेतु समाविष्ट है ।
उक्त प्रकाशन के पश्चात् निरन्तर मांग रहने के कारण हम चाहते थे कि पुनः प्रकाशन हो, कार्य भी पुनः चालू किया गया था परन्तु कभी मेरी शारीरिक कठिनाई के कारण तो कभी कुछ और कारण काम में रुकावट आती रही । ई.सं. 1995 में यहाँ चातुर्मासार्थ विराजित प. पूज्य अध्यात्मयोगी आचार्य भगवंत श्री कलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. का भी आशीर्वाद प्राप्त हुवा, परन्तु काम में कुछ न कुछ कारण रुकावट होती रही ।
श्री महावीर जैन कल्याण संघ के अनुरोध पर श्री जैन प्रार्थना मन्दिर ट्रस्ट ने नवम्बर 1999 में कार्य संभालकर महावीर भगवान की 26 वीं जन्म शताब्दी के पावन अवसर पर प्रकाशन करने का निर्णय लिया।
इस बार निरन्तर काम चलने पर भी कार्य में कभी भी रुकावट नहीं आई । मेरा भी स्वास्थ्य बिलकुल ठीक रहा व कार्य समय पर अच्छे ढंग से सुसम्पन्न हुवा यह सब प्रभु कृपा का ही कारण है। शायद प्रभु को, चरम तीर्थंकर भगवान महावीर की 26 वीं जन्म शताब्दी महोत्सव के पावन अवसर पर ही व श्री जैन प्रार्थना मन्दिर ट्रस्ट द्वारा ही प्रकाशन करवाना था ।
इस बार बुकिंग के समय देखा गया कि अनेकों महानुभावों ने यह ग्रंथ देखा ही नहीं न उन्हें जानकारी। अतः इस ग्रंथ को खरीदने वालों से अनुरोध करता हूँ कि कृपया इस ग्रंथ का अवलोकन आपके जान-पहिचान वाले बंधुवों को अवश्य कराकर पुण्य के भागी बनें ।
प्रथम मैं सभी तीर्थाधिराज भगवंतों व गुरुभगवंतो को यह पावन ग्रंथ समर्पित करते हुवे प्रार्थना करता हूँ कि आपका शुभ आशीर्वाद निरन्तर बना रहे । आपके आशीर्वाद से ही कार्य सुसम्पन्न हो सका ।
आचार्य भगवंत श्री कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. का मैं आभारी हूँ आपके आशीर्वाद निरन्तर मिलते रहे व आपने पाठकों व दर्शनार्थियों के उपयोगार्थ इस ग्रंथ की उपयोगिता व प्रतिफल के बारें में लिखकर भेजा जो इन ग्रंथों में समाविष्ट है । इसका असर हर पाठक पर अवश्य पडेगा जो उनके पुण्य-निर्जरा का कारण बनेगा।
सभी तीर्थों के व्यवस्थापकों व कर्मचारियों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। आपके पूर्ण सहयोग से कार्य की सफलता में सुविधा रही । श्रीमान् विमलचंदजी चोरड़िया, भानपुरा (M.P.) वालों को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने हर तीर्थ के दोहे बनाकर ग्रंथ की और भी शोभा बढ़ाई है ।
इसके संकलन सम्पादन व अन्य कार्यों में हरदम सहयोग देनेवाले श्री ओ. निहालचंदजी नाहर को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने अपना अमूल्य समय निकालकर इस कार्य में दिन रात निःस्वार्थ सेवा की । श्री हंसराजजी लूणीया को भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ, जिनका सहयोग हर वक्त हर कार्य में रहा ।
श्री महावीर जैन कल्याण संघ के अध्यक्ष श्री मोतीचंदजी डागा, उपाध्यक्ष श्री शेंशमलजी पान्डीया, श्री जी. विमलचंदजी झाबख, कोषाध्यक्ष श्री ओ. ताराचंदजी गुलेच्छा सहमंत्री श्री हंसराजजी लूणीया व सभी सदस्यों, श्री जैन प्रार्थना मन्दिर के सभी ट्रस्टी गणों एवं सभी शुभ चिन्तकों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। आप सभी की शुभ-कामना से ही कार्य निर्विघ्न सुसम्पन्न हो सका ।
श्रीनीवास फायन आर्ट लिमिटेड को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने छपाई के कार्य में पूर्ण रूची ली अतः काम में सुन्दरता आ सकी। अंग्रेजी भाषा के अनूवादक स्व. श्री रमणिक शाह का मैं आभारी हूँ जिन्होंने पूर्ण रूचि से कार्य सम्पन्न किया था । नये तीर्थों के गुजराती अनुवादक श्री उदय मेघाणी को भी कार्य सुसम्पन्न करने के लिये धन्यवाद देता हूँ ।
प्रेस कार्य में साथ रहने वाले श्री एस. कांतिलालजी रांका, उमेदाबाद वालों व श्री पी. गौतमचंद वैद को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने प्रेस के कार्य में हरवक्त निःस्वार्थ साथ में चलकर कार्य को सुन्दर ढंग से बनाने में सहायता प्रदान की ।
पुनः जिनेश्वरदेव, अधिष्टायक देव-देविओं व सभी आचार्य, मुनि भगवंतो को हार्दिक आभार प्रदर्शन करते हुवे प्रार्थना करता हूँ कि आपका आशीर्वाद निरन्तर हम पर बना रहे इसी शुभ कामना के साथ ....
सम्पादक व संस्थापक मानन्द मंत्री चेन्नई, मार्च 2002
यू. पन्नालाल वैद