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________________ आमुख (पूर्व प्रकाशित, प्रथम आवृति में से) जैन धर्म में ही नहीं अन्य धर्मों में भी तीर्थ-स्थलों को अनादि काल से अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है । तीर्थंकर भगवन्तों के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान एवं मोक्ष इन पाँच कल्याणकों से पवित्र हुए स्थान, प्रभु के समवसरण स्थल, प्रभु की बिहार-भूमि, प्रभु के चातुर्मास स्थल एवं उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित स्थल, मुनि [गों की तपोभूमि व निर्वाण भूमि, किसी सातिशय जिन प्रतिमाओं के चमत्कारों से प्रसिद्ध हुआ स्थान, विशिष्ठ कलात्मक मन्दिर व स्मारक, एक सौ वर्षों से ज्यादा प्राचीन मन्दिर व स्मारक-ये सब जैन परम्परा के पावन व पूज्यनीय स्थावर तीर्थ माने गये हैं। उक्त स्थानों की यात्रा कर मानव अपना जन्म सफल बनाता है । इन पुनीत स्थलों के वातावरण शुद्ध व निर्मल तो होते ही है, उनमें एक ऐसी भी अतिशय शक्ति रहती है जिसके कारण दर्शक वहाँ पहुँचते ही उनके परिणाम निर्मल होकर एक अलौकिक शान्ति का अनुभव करते हैं । जैसे मीलों दूर हुई बरसात की हवा बहुत दूर तक अपनी मलयानिल ठण्डी हवा आंखो से ओझल रहते हुए भी हिलोरें देती है, जेसे आटे मे शक्कर मिलाने से फीका आटा भी मीठा हो जाता है, उसी प्रकार तीर्थंकर भगवन्तों, मुनि महाराजों व सैकड़ों वर्षों तक भाग्यशाली श्रद्धालु दर्शकों द्वारा सेवन किये गये स्थल भी उन शुद्ध परमाणुओं से मिल-जुलकर दर्शकों में एक ऐसी अलौकिक शान्ति की भावना प्रदान करते हैं जो यात्रियों के मनुष्य जन्म को सफल बना देते हैं । उक्त स्थलों की संख्या सहस्रों में हैं । लेकिन कई आज ओझल हैं तो कई खण्डहर के रूप में हैं और अपूजित हैं । पूजित स्थलों में से अनेकों मुख्य स्थलों का इस ग्रंथ के माध्यम से भक्त जनों को मार्ग दर्शन देने का प्रयास किया गया है । निःसन्देह इस ग्रंथ में उपलब्ध चित्ताकर्षक चित्रों के दर्शन से भक्तजन घर बैठे प्रभु को अपनी श्रद्धा-सुमन अर्पण करके पुण्योपार्जन कर सकेंगे । कई तीर्थ-स्थलों के संबंध में अलग-अलग पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुई हैं । लेकिन भक्त जनों के लिये इन अलग-अलग पुस्तकों को संग्रहित कर रखना इतना सुलभ नहीं । इन सबको ध्यान में रखते हुए सारे तीर्थ-विवरणों को एक ही अमूल्य व अद्वितीय ग्रंथ के रूप में प्रकाशन करने का निर्णय हमारी संस्था ने लिया । इस ग्रंथ की उपयोगिता व महत्ता दर्शक व पाठक स्वतः अनुभव करेंगे । इस कार्य में अनेक आचार्य भगवन्तों, मुनि महाराजों, पेढ़ी के व्यवस्थापकों व अन्य श्रावकगणों का सहयोग सराहनीय है । इन सबका मैं आभारी हूँ । इस कार्य के प्रारंभ से सम्पूर्ण होने तक का श्रेय हमारे, मानद मंत्री श्री यू. पन्नालालजी वैद को है जिनकी प्रेरणा, पूर्ण प्रयास व निरन्तर मेहनत से ही कार्य सुसम्पन्न हो सका । अतः मानद मंत्री महोदय व उनके सहयोगियों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जिनके कारण हमारे संघ को यह महान ग्रंथ प्रकाशन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इनकी निस्वार्थ सेवा संघ के इतिहास में चिर स्मरणीय रहेगी । मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह ग्रंथ अति उपयोगि सिद्ध होकर हर घर में पुण्य का संचार करेगा । पाठकों से अनुरोध है कि कृपया त्रुटियों के लिये क्षमा करें । ___ अंत में श्री जिनेश्वर देव से प्रार्थना करता हूँ कि इस कल्पतरु महान ग्रंथ के दर्शकों व पाठकों को सुख समृद्धिवान बनावें । नवम्बर 1980 ए. मानकचन्द बेताला, अध्यक्ष, श्री महावीर जैन कल्याण संघ
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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