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भूमिका
(पूर्व प्रकाशित, प्रथम आवृति में से) विश्व के भूभाग में स्थित स्थलों में तीर्थ-स्थल विशिष्ट माने गये है । सभी धर्मों में तीर्थ स्थानों को विशेष महत्व दिया गया है। जैन तीर्थ-स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य से ओत-प्रोत विशिष्ट कला युक्त रहने के कारण अपना निराला स्थान रखते हैं । तीर्थ-स्थलों में पहुंचने पर वहाँ के पवित्र परमाणुओं से भाव निर्मल हो जाते हैं जिससे मानव भक्ति में लीन होकर अपूर्व पुण्य का संचय करता है । ये पावन तीर्थ आत्म-साधना के विशिष्ट स्थल हैं, जहाँ अनन्त भव्य आत्माओं ने सिद्धि प्राप्त की है व भविष्य में भी करेंगे। आदि काल से अनेकानेक भक्त जनों ने इन स्थलों की यात्रा कर अपना जीवन सफल बनाया है जिसका इतिहास साक्षी है ।
ऐसे पावन जैन तीर्थ-स्थलों को व्यापक रूप से प्रकाश में लाने व अन्य कई उद्देश्यों के साथ इस अपूर्व ग्रंथ की रचना की गई, जिसकी भूमिका प्रारंभ करने के पूर्व श्री महावीर जैन कल्याण संघ का परिचय देना मेरा कर्तव्य हो जाता है । श्री महावीर जैन कल्याण संघ की स्थापना :
श्री महावीर जैन कल्याण संघ की स्थापना का मुख्य कारण “गुरु श्री शान्तिविजय जैन विद्यालय" है । इस विद्यालय की स्थापना स्व. यतिवर्य श्री मंछाचन्द्रजी महाराज के कर कमलों द्वारा दिनांक 16 मार्च 1966 के शुभ दिन श्री चन्द्रप्रभ भगवान की छत्र-छाया में यहाँ वेपेरी सूलै में स्थित श्वेताम्बर जैन मन्दिर के उपाश्रय के एक कमरे में "श्री जैन विद्यालय" के नाम से हुई । इस विद्यालय को सुचारु रूप से चलाने हेतु "श्री महावीर जैन कल्याण संघ" का गठन कर दिनांक 1-7-1967 के शुभ दिन उसे पंजीकृत करवाके यह विद्यालय उक्त संघ के अंतर्गत किया गया जो दिनांक 22-1-1971 माघ शुक्ला बसन्त पंचमी के शुभ दिन दानदाताओं के इच्छानुसार परमपूज्य योगीराज श्री सहजानन्दधनजी महाराज के करकमलों द्वारा “गुरु श्री शान्तिविजय जैन विद्यालय" के नाम से परिवर्तित हुआ । गुरुदेव की असीम कृपा से प्रारम्भ से ही विद्यालय तीव्रगति से प्रगति के पथ पर है । वर्तमान में इस विद्यालय में 1125 विद्यार्थी शिक्षा पा रहे हैं व छात्र-छात्राओं के लिये बारहवीं कक्षा तक अलग-अलग पढ़ाई की व्यवस्था है । व्यावहारिक पढ़ाई के साथ-साथ संगीत व धार्मिक ज्ञान देने की भी व्यवस्था की गई है । आज यह विद्यालय मद्रास शहर के मध्य, खेल-कूद के लिये विशाल मैदान के साथ श्री महावीर जैन कल्याण संघ की निजी जगह में चल रहा है । संघ के उद्देश्य :
गुरु श्री शान्तिविजय जैन विद्यालय का संचालन करने व आगे बढ़ाने के अतिरिक्त जन-कल्याण के लिये हर प्रकार के अध्ययन व चिकित्सा सम्बन्धी कार्यों की स्थापना करना, संचालन करना व सहयोग देना संघ के उद्देश्य हैं। "तीर्थ-दर्शन" ग्रंथ की परिकल्पना :
वि. सं. 2024 में "अखिल भारत जैन-तीर्थ यात्रा संघ मद्रास" की 101 दिनों की मेरी यात्रा ही इस कार्य के प्रारंभ का मुख्य कारण है । उस यात्रा के दौरान अनेकों महानुभावों के सुझाव थे कि इस यात्रा का वर्णन व अनुभव प्रकाशित किया जाये ताकि भविष्य में यात्रियों को भी इसका लाभ मिल सके । उसको ध्यान में रखते हुए मैंने "भारत के जैन-तीर्थ व हमारे 101 दिनों की यात्रा के अनुभव" नामक पुस्तक लिखी । लेकिन कार्यवश विलम्ब होता गया । इतने में भगवान महावीर का पच्चीसवीं-निर्वाण शताब्दी-महोत्सव मनाने का सुअवसर आया व पूरे भारत में कई प्रकार के कार्य प्रारंभ हुए । गुरुदेव की असीम कृपा व अदृश्य प्रेरणा से मेरी भी इच्छा हुई कि कुछ ऐसा कार्य किया जाय जिसका सदियों तक लाभ मिल सके एवं संग्रहित सामग्री का प्रतिफल श्री महावीर जैन कल्याण संघ के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये काम आ सके । अतः इस पुस्तक को कुछ धार्मिक विवरणों के साथ व्यापक रूप देकर प्रकाशित करने की इच्छा हुई । अतः यह प्रस्ताव मैंने संघ की समिति के सम्मुख विचारार्थ रखा । उसपर समिति