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ने विचार-विमर्श करके यह संशोधनीय कार्य प्रारंभ करने का निश्चय कर भगवान महावीर निर्वाण शताब्दी महोत्सव .. की स्मृति में ऐतिहासिक ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय लिया ।
"तीर्थ-दर्शन" ग्रंथ प्रकाशन के उद्देश्य : 1 यात्रियों को जैन-तीर्थ स्थल संबंधी जानकारी देना हर एक तीर्थ-स्थल का इतिहास तीर्थंकर भगवन्तों, आचार्य भगवन्तों, जैन राजा-महाराजाओं, मंत्रिओं या श्रेष्ठियों से संबंध रखता है । कुछ ऐसे भी तीर्थ है जो पुरातत्व दृष्टि व धार्मिक दृष्टि से विशिष्ट माने गये हैं । मुझे पूर्ण विश्वास है कि यात्रीगण इन पावन तीर्थ-स्थलों के इतिहास की जानकारी पाकर प्रसन्नता व गौरव का अनुभव करेंगे व जिन्दगी में कम से कम एक बार हर तीर्थ-स्थल का दर्शन कर अपना जीवन सफल बनायेंगे । वर्तमान पीढ़ी के लिये ही नहीं भावी पीढ़ी के लिये भी यह ग्रंथ प्रेरणाप्रद होगा । 2 युवावर्गों में धार्मिक भावना जाग्रत करना युवावर्गों में धार्मिक भावना जागृत करना ही नहीं उसे कायम रखना भी इस वैज्ञानिक युग में अति आवश्यक है । इसके लिये यह ग्रंथ सहायक सिद्ध होगा। दर्शन के साथ-साथ धार्मिक भावना जागृत करने के लिये यह ग्रंथ बोधप्रद सचित्र इतिहास से अलंकृत किया गया है ।
साधारणतया पाठक उसी पुस्तक या ग्रंथ के लिये हाथ बढ़ाता है जिनमें चित्र हों । उनमें भी रंगीन चित्रों के देखते ही उस पुस्तक के अवलोकन की तीव्र इच्छा जागृत हो जाती है चाहे वह कोई भी पुस्तक हो । जब पाठक चित्र देखता है तो पढ़ने की भी कुछ इच्छा हो जाती है । इसी भांति इस अनमोल ग्रंथ के हर पृष्ठ पर अलग-अलग प्रकार के अलौकिक चित्र हैं जो प्रत्यक्षता प्रमाणित करते हैं । निःसंदेह हर एक वयस्क इस ग्रंथ को दूर से देखते ही एक बार तो पूरे पृष्ठों के अवलोकन की इच्छा करेंगे । इन अपूर्व चित्रों के दर्शन करते ही उनको इतिहास पढ़ने की इच्छा होगी व इतिहास की जानकारी होने से धर्म के प्रति श्रद्धा बढ़ेगी । इस प्रकार बच्चों व नवयुवकों में धर्म के प्रति श्रद्धा व प्रभु के प्रति भक्ति बढ़ाने में यह ग्रंथ प्रेरणाप्रद होगा । 3 तीर्थ-स्थलों का प्रचार होकर आवागमन बढ़ना तीर्थ-स्थलों का आवागमन बढ़ना उतना ही आवश्यक है जितना धर्म का प्रचार । क्योंकि ये तीर्थ-स्थल ही अपने तीर्थंकर भगवन्तों, आचार्य भगवन्तों, व अपने पूर्वजों आदि की याद दिलाते हैं । इतिहास की प्रमाणिकता के ये स्मारक साक्षी स्वरूप हैं । इन्हें व्यवस्थित ढंग से संभालना हर जैन बन्धु का कर्तव्य हो जाता है । यहाँ का वातावरण इतना निर्मल व शुद्ध है जो मानव को भवसागर से पार लगा देता है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस ग्रंथ के प्रकाशन से तीर्थ स्थलों पर यात्रियों का आवागमन बढ़ेगा । 4 बुजुर्गों को प्रतिदिन देवाधिदेव तीर्थाधिराजों के दर्शन का लाभ मिलना यह प्रकृति का नियम है कि वृद्धावस्था आने पर प्रायः हर मानव में धर्म के प्रति विशेष रुचि जागृत होती है । उस वक्त उनको समय बिताने व आत्मशान्ति के लिये किसी प्रकार के धर्म कार्य में लीन होने की इच्छा होती है । उन भाग्यवान बंधुओं के लिये यह एक महान अति उपयोगी ग्रंथ सिद्ध होगा, जिसके माध्यम से उनको हर तीर्थाधिराज के साक्षातकृत दर्शन का लाभ मिलेगा । दर्शन करते ही तीर्थ का स्मरण हो आयेगा । हमेशा उनके लिये समय बिताना तो आसान होगा ही, प्रभु-दर्शन से उनको महान पुण्य का लाभ भी होगा व वे अत्यन्त शान्ति का अनुभव भी करेंगे । शास्त्रों में भी बताया गया है कि किसी कठिनाईवश तीर्थ यात्रा न कर सकने पर मानव घर बैठे-बैठे सात्विक भाव से तीर्थाधिराजों के भावपूर्वक दर्शन कर पुण्योपार्जन कर सकता है। 5 पर्यटकों व संशोधकों को मार्ग-दर्शन देना आज के युग में यातायात के अनेकों साधन होने के कारण कई भारतीय व विदेशी पर्यटक अपने अमूल्य मानव भव में अधिक से अधिक दर्शनीय स्थलों के दर्शन की अभिलाषारखते हैं । विश्व के विभिन्न स्थलों में बसे सर्वसुविधा सम्पन्न कई सज्जन ऐसे स्थलों की खोज में घूमते रहते हैं जहाँ उनकी आत्मा को विशेष शान्ति मिल सके । विश्व में दर्शनीय स्थल तो अनेक हैं परन्तु शान्ति का अनुभव तो धार्मिक स्थलों पर ही हो सकता है जहाँ के परमाणु अत्यन्त निर्मल व शुद्ध होते है ।