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जैन तीर्थ स्थल उन धार्मिक स्थलों में हैं जहाँ उन्हें अपूर्व शान्ति का प्रत्यक्ष अनुभव तो होता ही है साथ ही उन्हें विशिष्ट कला व प्राकृतिक सौन्दर्य के अवलोकन का अमूल्य अवसर भी प्राप्त होता है ।
ऐसे स्थलों पर जाने की अभिलाषा रखने पर भी सही मार्ग-दर्शन के बिना पर्यटक कभी-कभी स्थल के निकट पहुँचने पर भी जाने से वंचित रह जाता है । अतः यह अमूल्य ग्रंथ उनके लिये मार्ग-दर्शन के रूप में रहेगा व अधिक से अधिक पर्यटक इन स्थलों के दर्शन का लाभ उठा सकेंगे ।
इसी भांति संशोधकों के लिये भी यह ग्रंथ उतना ही लाभप्रद होगा । निःसन्देह इस ग्रंथ में शोधकों के लिये ज्यादा विस्तार पूर्वक वर्णन नहीं है लेकिन हर स्थान के बारे में आवश्यक संकेत दिये गये हैं जिनके माध्यम से संशोधकगण अपने कार्य में प्रगति कर सकेंगे । मुझे पूर्ण विश्वास है कि संशोधकों को भी यह ग्रंथ उनके संशोधन कार्य में सहारे के रूप में रहेगा ।
कार्य का प्रारंभ :
कार्य को व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाने के लिये संस्मृति ग्रंथ समिति व अन्य उपसमितियाँ बनाई गईं एवँ "जैन कंट्रिब्यूशन टु तमिल लिटरेचर एण्ड आर्ट” विषय पर सेमीनार के विराट सम्मेलन के साथ दिनांक 17-3-74 को कार्य प्रारंभ हुआ । जिसमें तमिलनाडु के तात्कालीन राज्यपाल महोदय, विधान सभा के अध्यक्ष महोदय, मंत्री महोदय एवं अनेकों विद्वानों ने भाग लिया । दक्षिण भारत के इतिहास में इस ढंग का यह प्रथम सम्मेलन था, जिसका उल्लेख तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रकाशित तमिल अरसु नवम्बर 74 की पत्रिका में निम्र प्रकार हुआ है ।
The Sangh organised recently a Seminar on Jain contribution to Tamil Art and Literature and an Exhibition for 3 days in connection with 2500th Nirvan of Bhagwan Mahavir. The Seminar and Exhibition were the first of its kind in South India.
सहयोग पाने के लिये भ्रमण :
विभिन्न जगहों के भाग्यशालियों के नाम सहयोगी के तौर पर इस अनमोल ग्रंथ में अंकित हो सके, इसी उद्देश्य को लेकर पूरे तमिलनाडु का भ्रमण किया गया । बड़े ही उत्साह के साथ सब जगह से आवश्यक सहयोग प्राप्त हुआ ।
तीर्थों की फोटोग्राफी :
हम चाहतें थे कि इस ग्रंथ में प्रत्यक्ष रंगीन फोटो दिये जायँ ताकि दर्शक मुग्ध हो सके रखते हुए यहाँ से फोटुग्राफरों के साथ दिनांक 16 जनवरी 1975 को एक डेलीगेशन भेजा गया करने के लिये तमाम पेढ़ी के व्यवस्थापकों से अनुरोध किया गया ।
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। इसी को ध्यान में
उन्हें सहयोग प्रदान
यात्रा का अमूल्य अवसर व संघ की सेवा को ध्यान में रखकर डेलीगेशन के सदस्यों ने पूरे भ्रमण का खर्चा खुदने किया जिससे संघ को सिर्फ फोटोग्राफर का वेतन व फिल्म का मूल्य ही देना पड़ा । डेलीगेशन 141 दिनों का निरन्तर भ्रमण करके फोटोग्राफी लेकर दिनांक 5 जून 1975 को लौटा। इनके प्रयाण में जगह-जगह अनेकों आचार्य भगवन्तों, मुनि महाराजों एवं विशिष्ट व्यक्तियों से वार्तालाप हुआ व सबने कार्य की सराहना करते हुए आशीर्वाद दिया ।
लोद्रवपुर में चमत्कार :
लोद्रवपुर में हुए चमत्कार का विवरण लोद्रवपुर तीर्थ के इतिहास में पुष्ठ 164 पर दिया गया है । ठीक फोटोग्राफी के समय अधिष्ठायक देव का साक्षात् में प्रकट होना इस ग्रंथ के लिये पार्श्वप्रभु का प्रत्यक्ष आशीर्वाद है । इस अनहोनी घटना ने इस ग्रंथ की महानता को प्रमाणित किया है। यह आशीर्वाद डेलीगेशन के लिए ही नहीं इस संस्था एवं इस ग्रंथ के दर्शकों व पाठकों के लिये भी अति दुर्लभ महत्वपूर्ण आशीर्वाद है । श्री धरणेन्द्रदेव के अतिदुर्लभ चित्र का इस ग्रंथ में समाविष्ठ होना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस अलौकिक, अचिंतनीय, अवर्णनीय, अतिदुर्लभ घटना के रहस्य को समझना मेरी शक्ति के परे है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि श्री धरणेन्द्रदेव की अनुकम्पा से दर्शकगण विशेष आत्मशांति का अनुभव करेंगे ।