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________________ ग्रंथ में तीर्थ-स्थलों का समावेश : भारत भूमि में असंख्य जैन-मन्दिर व स्मारक थे जिनका इतिहास साक्षी है । आज भी अनेकों खण्डहर रूप में अपूजित मन्दिर व गुफाएँ आदि हर प्रान्त में जगह-जगह पाये जाते हैं, तो कई परिवर्तित भी हो चुके हैं । तब भी आज पूजित जिन मन्दिरों की संख्या लगभग 15,000 से कम नहीं होगी जो भारत के तमाम प्रान्तों में स्थित हैं । इनमें लगभग 5 हजार मन्दिर सौ साल से ज्यादा प्राचीन होंगे । परन्तु इन सबका वर्णन संभव नहीं । हमने निम्न स्थानों के जिन मन्दिरों को यथा संभव इस ग्रंथ में समाविष्ठ किया है । ये प्राचीन स्थल आज भी गौरव के साथ अपने पूर्व प्रतिभा की याद दिलाते हैं । इस का श्रेय अपने परमपूज्य आचार्य भगवन्तों व मुनि महाराजों को है जिनके उपदेश से हमारे पूर्वज कई राजा महाराजाओं, मंत्रियों व श्रेष्ठियों ने बड़ी ही लग्न व श्रद्धा से इन भव्य मन्दिरों का निर्माण करवाया । जिन पर जैन समाज को अतीव गौरव है । आज भी हम उन पावन स्थलों की यात्रा कर पुण्योपार्जन करके अपने को धन्य समझते हैं। * तीर्थंकर भगवन्तों की कल्याणक भूमियाँ - जहाँ पर प्रभु के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान व मोक्ष-कल्याणक हुए हैं । चमत्कारिक (अतिशय) या सिद्ध क्षेत्र । कलाकृति आदि में विशिष्ट मन्दिर । * प्राचीन क्षेत्र - जहाँ का इतिहास सात सौ वर्षों के पूर्व का हो वहाँ का प्राचीन पूजित जिन मन्दिर। * किसी भी पंचतीर्थी में स्थान पाने वाले स्थल । हमने कई पत्र-पत्रिकाओं में उक्त प्रकार के पावनस्थलों की जानकारी भेजने के लिये आम अनुरोध किया था । प्राप्त जानकारी, हमारा अनुभव व कई ग्रंथ एवं पुस्तकों आदि का सहारा लेकर इन पावन स्थलों को इस ग्रंथ में समाविष्ट किया है । पाठकों से अनुरोध है कि अगर और भी कोई स्थल रह गया हो तो हमें आवश्यक जानकारी भेजें । परिशिष्ट प्रकाशन की आवश्यकता समझी गई तो सुविधा होने पर प्रकाशित किया जायेगा । उस समय फोटो आदि प्राप्त होने पर उस स्थान को मिलाने का प्रयास किया जायेगा । इतिहास व अन्य जानकारी : हम चाहते थे कि इस ग्रंथ में तीर्थों की जानकारी के अतिरिक्त जैन-दर्शन, साहित्य व कला संबंधी भी कुछ जानकारी दें । परन्तु तीर्थों की जानकारी पाकर व्यवस्थित ढंग से गठन करने में ही इतना समय लग गया । जिसके कारण उन विषयों पर ध्यान नहीं दिया जा सका । अतः मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। हमने हर तीर्थ के विवरण को अनेकों ग्रंथ व पुस्तकों की मदद एवं प्रत्यक्ष प्राप्त जानकारी से गठन कर पेढ़ी व संबंधित अध्यक्ष महोदय को भेजकर उनसे आये सुझावों पर गौर करके तीर्थों के विवरणों को मुद्रित किया है । इस कार्य में तमाम तीर्थ स्थलों के व्यवस्थापकों व कर्मचारियों का जो सहयोग प्राप्त हुआ वह सराहनीय है । स्व. सेठ श्री कस्तूरभाई (सेठ आनन्दजी कल्याण पेढ़ी के प्रमुख) के साथ अनेकों बार पत्र व्यवहार एवं परस्पर वार्तालाप में इन्होंने हर वक्त अपने अमूल्य सुझाव दिये जो सराहनीय है। इस कार्य में कई आचार्य भगवन्तों व मुनि महाराजों का भी सहयोग प्राप्त हुआ जिनमें यहाँ विराजित आचार्य श्री विक्रमसूरीश्वरजी व मुनि श्री राजयशविजयजी आदि का सहयोग उल्लेखनीय है । नमूने के तौर पर झांकी का विमोचन : हमने इस ग्रंथ के प्रारुप का विमोचन "तीर्थ दर्शन की एक झांकी' के रूप में पांच भाषाओं में दिनांक 23-4-78 चैत्री पूर्णिमा के शुभ दिन परमपूज्य श्री विशालविजयजी महाराज की निश्रा में यहाँ के राज्यपाल श्री प्रभुदासजी पटवारी के हार्थों कराया था । इस विमोचन का मुख्य उद्देश्य इस ग्रंथ का प्रचार व आचार्य भगवन्तों, मुनि महाराजों एवं समाज के विशिष्ट व्यक्तियों के सुझावों को पाना था ताकि तीर्थों के इतिहास का गठन सुन्दर ढंग से किया जा सके । अतः हमने इस झांकी की प्रतियों को अनेकों आचार्य भगवन्तों, मुनि महाराजों एवं 3000 से ज्यादा 10
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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