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और चन्द्रगुप्त व कुमारदेवी की दूसरी ओर लक्ष्मी की मूर्ति अंकित की गई थी । आज भी अनेक ऐसे प्राचीन सिक्के मिलते हैं जो गुप्त कालीन माने जाते है ।
समुद्रगुप्त ने भी वैशाली को बरबाद कर दिया । वह खण्डहर और मलवे का ढेर बन गई जो आज तक पुनः आबाद न हो पाई । आज भी अनेक प्राचीन खण्डहर पाये जाते है । वर्तमान में इस मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा मन्दिर से सटे दक्षिण स्थित बौना तालाब में से प्राप्त हुई थी । यह प्रतिमा दो हजार वर्षों से भी प्राचीन मानी जाती है ।
विशिष्टता * यहाँ का महत्वपूर्ण प्राचीन हतिहास संक्षेप में ऊपर दिया जा चुका है । दिगम्बर मान्यतानुसार इस स्थान की मुख्य विशेषता यह है कि यह प्रभु वीर की जन्म भूमि मानी जाती है । प्रभु का ननिहाल यहाँ था । महाप्रतापी और धर्म प्रभावी राजा श्री चेटक यहाँ हए । यहाँ जो गणराज्य की स्थापना हुई थी तथा उसके विधान बनाये गये थे वे भारत के इतिहास में उल्लेखनीय हैं । भारत में गणराज्य की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है ।
इस' स्थान के पास बिहार सरकार ने प्राकृत जैन-शास्त्र और अहिंसा संस्थान की स्थापना की है जिसका मुख्य भवन साहु श्री शान्तिप्रसाद जैन के द्वारा बनवाया गया है । इस संस्थान में प्राकृत एवं तलताया गाया है । इस संस्थान में पाक जैन-शास्त्र विषय में एम. ए. की पढ़ाई होती है तथा
साईनोली तथा पी. एच. डी. एवं डी लिट्. की उपाधियों के लिए शोधकार्य कराया जाता है । इसके अतिरिक्त प्रकाशन भी यहाँ से होते हैं । यह संस्था बिहार विश्वविद्यालय से सम्बंधित है । यहाँ प्राकृत एवं जैनशास्त्र विषयक अध्ययन के लिये देश के भिन्न-भिन्न राज्यों के अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के विदेशी विद्यार्थी भी आते हैं । प्राकृत और जैनशास्त्र के उच्च अध्ययन, शोध और प्रकाशन के लिए स्थापित यह संस्थान समस्त भारतवर्ष में अपने ढंग का अकेला है । इस संस्थान से वैशाली की गौरव-वृद्धि हुई हैं ।
अन्य मन्दिर * वर्तमान में इसके अतिरिक्त और कोई जैन मन्दिर नहीं हे । एक और विशाल दि. मन्दिर के निर्माण का कार्य अभी तक चल रहा है । जैन बिहार से लगभग 5 कि. मी. दूर बासुकुण्ड (कुण्डपुर) ग्राम में भगवान महावीर की जन्मभूमि
मानी जाती है । कहा जाता है कि इस स्थान पर महाराजा सिद्धार्थ का महल था । ऐसी मान्यता है कि भगवान महावीर ने यहीं जन्म लिया था । यहाँ की जथरिया जाति भगवान को अपना पूर्वज मानती है । लगभग दो एकड़ जमीन छोड़ रखी गई है तथा अत्यन्त प्राचीन काल से आज तक उस पर हल नहीं जोता गया है । आस-पास के ग्रामीणों का कहना है कि भगवान का यहाँ जन्म हुआ था । प्रतिवर्ष भगवान महावीर के जन्म दिवस पर गाँव के लोग इस स्थान पर पूजा करते थे । अब यह जमीन सरकार के अधीन कर दी गई हैं । तथा पिछले कई वर्षों से दिगम्बर जैन समाज की ओर से अत्यन्त धूमधाम से यहाँ पूजा होती है ।
कला और सौन्दर्य * प्रभु प्रतिमा की कला तो विशिष्ट है ही, यहाँ अनेक प्राचीन खण्डहर दर्शनीय हैं। जिनका वर्णन करना सम्भव नहीं । यहाँ पर भारत सरकार के पुरातत्व विभाग का एक म्युजियम (संग्रहालय) भी है जहाँ प्राचीन प्रतिमाएँ व अवशेष सुरक्षित हैं । प्रसिद्ध अशोक स्तम्भ भी यहाँ है । यहाँ जैन विहार के पीछे एक टीला है जो राजा विशाल के गढ़ के नाम से विख्यात है । यह प्राचीन लिच्छिवियों की राजधानी वैशाली में स्थित अमेघ दुर्ग तथा महलों के भग्नावशेष का द्योतक है ।
मार्ग दर्शन * नजदीक के रेल्वे स्टेशन मुजफुरपुर और हाजीपुर 35 कि. मी. व पटना 55 कि. मी. दूर है । जहाँ से बस व टेक्सी की सुविधा है । मन्दिर से बस स्टेण्ड 12 कि. मी. दूर है । बसे जैन विहार के सामने ठहरती हैं । मन्दिर तक बस व कार जा सकती हैं ।
बंधाएँ * बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के अधीन एक टूरीस्ट बंगला है जहाँ यात्री ठहर सकते हैं। इसके अतिरिक्त एक जैन विहार धर्मशाला है, जहाँ बिजली, पानी की सुविधा उपलब्ध हैं ।
पेढ़ी * श्री वैशाली कुण्डपुर तीर्थ क्षेत्र कमेटी, पोस्ट : वैशाली - 844 128. जिला : वैशाली, प्रान्त : बिहार, फोन : 06225-29520.