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श्री वैशाली तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री महावीर भगवान, श्याम वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 38 सें. मी. (दि. मन्दिर)।
तीर्थ स्थल * वैशाली गाँव के बाहर लगभग 172 कि. मी. दूर ।
प्राचीनता * कहा जाता है कि वैशाली की स्थापना इक्ष्वाकु और अलम्बुषा के पुत्र विशाल राजा ने की थी । यह भी मत है कि कई गाँवों को सम्मिलित करके इसे विशाल रूप दिया गया जिससे इसका नाम वैशाली पड़ा ।
आजकल यह स्थान बसाढ़ नामक गाँव से भी पहिचाना जाता है ।
यहाँ की प्राचीनता का इतिहास अति ही प्रभावशाली एवं गौरवशाली तो है ही, भगवान महावीर से सम्बन्धित होने के कारण और भी पवित्र हो गया है।
सिद्धार्थ था । यहाँ के राजा चेटक श्वेताम्बर मान्यतानुसार त्रिशला माता के भाई थे व दिगम्बर मान्यतानुसार पिता थे । राजा चेटक जैन धर्मावलम्बी थे और श्री पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे । श्वेताम्बर मान्यतानुसार राजा चेटक के सात पुत्रियाँ थीं । पहली पुत्री प्रभावती सौवीर के जैन राजा उदयन के साथ ब्याही गयी थी । द्वितीय पुत्री पद्मावती अंग नरेश दधिवाहन के साथ, तीसरी शिवदेवी अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत के साथ, और ज्येष्ठ श्री महावीर के भ्राता श्री नन्दीवर्धन के साथ ब्याही थी, चेल्लना मगध के राजा श्री श्रेणिक की पटरानी थी तथा सुज्येष्ठा अपरिणित रही । मृगावती कौशाम्बी के राजा शतानीक के साथ ब्याही थी । ये सारे राजा जैनी थे । श्रेणिक राजा बौद्ध धर्म का अनुयायी था परन्तु चेल्लना से प्रेरणा पाकर वह भी जैन धर्म का अनुयायी बन चुका था ।
दिगम्बर मान्यतानसार चेटक की सात पत्रियाँ और दस पुत्र बताये गये हैं । पुत्रियों के नामों में भी कुछ भिन्नता है ।
कहा जाता है कि जनकवंश के अन्तिम राजा कलार को जनता ने उसके दुराचार के कारण मार डाला था
दिगम्बरों की एक मान्यतानुसार प्रभ महावीर के तीन कल्याणक-च्यवन, जन्म व दीक्षा यहाँ हए । प्रभु की माता का नाम त्रिशला व पिता का नाम राजा
श्री महावीर भगवान जिनालय - वैशाली
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