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श्री पार्श्वनाथ भगवान, चरण पादुका - श्वेताम्बर मन्दिर - उदयगिरि (राजगृही)
चढ़ाई कठिन व लगभग 1/2 कि. मी. है । सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । यहाँ भी श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर बने हुए हैं । उसी मार्ग से वापस उतरना पड़ता है । उतरने पर जलपानगृह बने हुए हैं । बाई और पर्वत के चरणों को धोती हुई फल्गु नदी बहती है । यहाँ से धर्मशाला लगभग 17 कि. मी. हैं ।
धर्मशाला से चौथे पर्वत स्वर्णगिरि की तलेटी (श्रमणगिरि भी कहते हैं) लगभग 5 कि. मी. है । चढ़ाई लगभग 2 कि. मी. है । सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । इस पर्वत पर भी श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर बने हुए हैं । यहाँ से लगभग 2 कि. मी. दूर जरासंध का अखाडा है । आगे बढ़ने पर पाँचवें पर्वत वैभारगिरि की चढ़ाई प्रारम्भ होती है । कुल सीढ़िया 565 हैं । पर्वत पर श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर हैं । बांची और कुछ दूर श्री शालिभद्र का मन्दिर है । भगवान महावीर के ग्यारह गणधर यही से मोक्ष सिधारे थे । इस मन्दिर के एक तरफ एक भग्न जैन मन्दिर हैं। इसमें अनेक प्राचीन तथा अति कलात्मक प्रतिमाएँ है। यह मन्दिर आठवीं सदी का माना जाता है । आगे जाने पर सप्तपर्णी गुफा है । कहा जाता है बौद्ध भिक्षुओं का प्रथम सम्मेलन यहाँ हुआ था । पहाड़ की पूर्वी टलान पर एक पत्थर का मकान है जो जरासंध की बैठक माना जाता है । इस पर्वत के दक्षिणी ढलान पर दो गुफाएँ हैं । एक पश्चिम की ओर व दूसरी पूर्व की ओर । पश्चिम गुफा में दिवार पर प्राचीन शिलालेख उत्कीर्ण हैं जो तीसरी चौथी शताब्दी के बताये जाते हैं। पहले इस गुफा में एक चतुर्मुखी प्रतिमा थी। इस गुफा के संबध में एक
जिनालयों का दृश्य - उदयगिरि (राजगृही)
इस प्रथम पर्वत से लगभग 1/2 कि. मी. उतरने व 1/2 कि. मी. पुनः चढ़ने पर द्वितीय रत्नगिरि पर्वत आता है । पहले पर्वत से दूसरे पर्वत का रास्ता इतना सुलभ नहीं है । इस रत्नगिरि पर्वत पर भी श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर बने हुए हैं ।
इस रत्नगिरि के सामने गृध्रकूट पर्वत पर बुद्ध भगवान का विशाल मन्दिर है । कहा जाता है भगवान बुद्ध अनेकों बार इस पर्वत पर आये थे व उनकी देशना हुई । इस रत्नगिरि पर्वत से 2 कि. मी. पर गया-पटना रोड़ मिलती है । फिर एक कि. मी. जाने पर तीसरे उदयगिरि पर्वत की चढ़ाई प्रारम्भ होती है।
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