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________________ श्री आदिनाथ भगवान, चरण पादुका, श्वेताम्बर मन्दिर - स्वर्णगिरि (राजगृही) किंवदन्ति यह भी है कि गुफा में राजा श्रेणिक का स्वर्णकोष छिपा हुआ है । इसलिए इस गुफा का नाम स्वर्णभन्डार चला आ रहा है। दूसरी पूर्व की गुफा में दीवारों पर प्रतिमाएँ अंकित हैं। ये गुफाएँ तीसरी शताब्दी की मानी जाती हैं। पर्वत से उतरने पर गरम जल के कुण्ड है, जिन्हें ब्रह्मकुण्ड कहते हैं । यहाँ से धर्मशाला लगभग 3 कि. मी. दूर है। अन्य मन्दिर * पर्वतों की तलहटी राजगिर गाँव में श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर हैं । पाँचों पहाड़ों पर ऊपर वर्णित मन्दिर हैं । पाँचवें पर्वत वैभारगिरि पर एक भग्न मन्दिर है जिसमें अनेक प्राचीन कलात्मक जिन प्रतिमाएँ हैं । भग्न मन्दिर की सारी प्रतिमाएँ वर्तमान में अपूजित हैं व पुरातत्व विभाग के अधीन है। यह मन्दिर आठवीं सदी का माना जाता है । कला और सौन्दर्य *तलहटी में स्थित श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिरों में प्राचीन प्रतिमाओं की कला अति दर्शनीय है । प्रायः पहाड़ पर की प्राचीन प्रतिमाएँ यहाँ लाकर स्थापित की गई है । पाँचवें पहाड़ पर भग्न मन्दिर की प्रतिमाओं की कला अति ही दर्शनीय है । इनके अतिरिक्त मणियार मठ है (जिसे निर्माल्य कुप भी कहते हैं) कहा जाता है ऋद्धि-संपन्न श्रेष्ठी श्री शालिभद्रजी के पितामह देवलोक से हमेशा पुत्र व बत्तीस पुत्र वध गुओ के लिए भोजन, वस्त्र व अलंकार की तेंतीस-तेंतीस पेटियाँ भेजते थे । जिन्हें हमेशा उनयोग करके इस कुप में फेंक दिया जाता था । श्रेणिक (बिम्बसार) बन्दीगृह, जो मणियार मठ से एक कि. मी. है वहाँ अजातशत्रु ने अपने पिता श्रेणिक को बन्दी बनाकर रखा था । गर्म जल के कुण्ड अति प्राचीन हैं जिनका वर्णन कर दिया गया है । जरासंध की बैठक सप्तपर्णी गुफा आदि देखने योग्य है। मार्ग दर्शन यहाँ का रेलवे स्टेशन राजगिर तलहटी धर्मशालाओं से 2 कि. मी. है । यहाँ का बस स्टेण्ड तलहटी धर्मशालाओं से सिर्फ 7 कि. मी. है। गाँव में टेक्शी व आटो रिक्शों का साधन है । पटना से सड़क तथा रेल द्वारा 100 कि. मी. गया से सड़क द्वारा 65 कि. मी. व बख्तियारपुर से सड़क तथा रेल द्वारा 50 कि. मी दूर हैं । सुविधाएँ * ठहरने के लिये तलहटी में श्वेताम्बर व दिगम्बर सर्वसुविधायुक्त विशाल धर्मशालाएँ है । जिनालयों का दृश्य - स्वर्णगिरि (राजगृही)
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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