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श्री नमिनाथ भगवान निर्वाण स्थल ट्रॅक - सम्मेतशिखर हैं । प्रभु तो पावापुरी से मोक्ष सिधारे हैं । पश्चात्
सत्ताइसवीं टूकः- सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्शनाथ भगवान की है । यहाँ से प्रभु फाल्गुन कृष्णा सप्तमी को पाँच सौ मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे हैं । आगे अट्ठाइसवीं ट्रॅक :- तेरहवें तीर्थंकर श्री विमलनाथ भगवान की है । यहाँ से भगवान आषाढकृष्णा सप्तमी के दिन छ सौ मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे हैं । आगे चलने पर उन्तीसवीं टूक :- द्वितीय तीर्थंकर श्री अजितनाथ भगवान की आती है । यहाँ से प्रभु चैत्र शुक्ला पंचमी को एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष पधारे हैं । अब तीसवीं ढूँक :- श्री नेमिनाथ भगवान की आती है । प्रभु के चरण दर्शनार्थ स्थापित हैं । प्रभु तो गिरनार पर्वत पर मोक्ष सिधारे हैं । अब आगे जो दिखाई देती है वह है इस यात्रा की अन्तिम सर्वोच्च ट्रॅक जिसके शिखर का दर्शन 30-40 मील दूर से होता है वह है इकत्तीसवीं टूक :- तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान की । इसे मेघाडम्बर ट्रैक भी कहते हैं । इस ट्रैक पर दो मंजिल का शिखर युक्त मन्दिर बना हुआ है । नीचे की मंजिल में भगवान श्री पार्श्वनाथ के
प्राचीन चरण स्थातिप हैं । श्री पार्श्वनाथ भगवान श्रावण द्वारा निर्मित किया गया हो । यहाँ नहाने -धोने, शुक्ला अष्टमी को तेत्तीस मुनियों के साथ यहीं से सेवा-पूजा की उत्तम व्यवस्था है । मन्दिर के पास दो मोक्ष सिधारे हैं । आखिर में पार्श्वनाथ भगवान यहाँ कुण्ड हैं । इन कुण्डों से जितना पानी निकाले तब भी से मोक्ष जाने के कारण इस पर्वत का नाम भी अक्षय नीर बहता ही रहता है । विश्राम के लिये दो जनसाधारण में पारसनाथ पहाड़ पड़ा । सरकारी छोटी श्वेताम्बर धर्मशालाएँ बनी हुई हैं । यहाँ पूजा दस्तावेजों आदि में भी पारसनाथ हिल हैं। सेवा करके साथ जो हो वह खा पीकर आगे चलने की इस ट्रैक पर से चारों ओर दृष्टि फेरने पर अति ही तैयारी करनी है यहाँ से आगे चलने पर बीसवीं मनोहर दृश्य दिखाई पड़ते हैं । आकाश अपने से बातें ट्रॅक :- श्री शुभ गणधरस्वामी की आती है । आगे करना चाहता है ऐसा प्रतीत होता है । बादलों के समूह इक्कीसवीं टूक :- पन्द्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ भगवान अपनी रिमझिम गति से पर्वत से आलिंगित होते ही की है । प्रभु ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को एक सौ आठ बरस पड़ते हैं । चमत्कारिक जड़ी-बूटियों और प्रभाविक मुनिवरों के साथ यहाँ से मोक्ष सिधारे हैं । पश्चात् वनस्पतियों का इस भूमि में भन्डार हैं । बाईसवीं ट्रॅक :- श्री वारिषेण शाश्वताजिन ट्रॅक आती है। पूर्व तीर्थंकर भगवन्तों की निर्वाण भूमि होने के आगे चलने पर तेईसवीं ट्रॅक :- श्री वर्धमानन शाश्वत कारण श्री पार्श्वनाथ भगवान इस पहाड़ को अति जिन ट्रॅक है । फिर चौबीसवीं ट्रॅक :- पाँचवें तीर्थंकर पवित्र, एकान्त, रमणीय, ध्यान के अनुकूल जानकर श्री सुमतिनाथ भगवान की आती है । यहाँ से प्रभु एक
बार-बार आये । इस प्रदेश के लोगों में धर्मोपदेश करते हजार मुनियों के साथ चैत्र शुक्ला नवमी को मोक्ष
विचरण किया व मोक्ष को प्राप्त हए । यहाँ के सिधारे हैं । बाद में पच्चीसवीं ट्रॅक :- सोलहवें तीर्थंकर
___ जनवासियों में आज भी उनके प्रति दृढ़ भक्ति है। लोग श्री शान्तिनाथ भगवान की आती है। यहाँ से भगवान
उन्हें पारसनाथ महादेव, पारसनाथ बाबा कहकर स्मरण ज्येष्ठकृष्णा तेरस को नव सौ मुनियों के साथ मोक्ष
करते हैं । आज भी भगवान के जन्म दिवस पौष सिधारे हैं । अब छब्बीसवीं ट्रॅक:- श्री महावीर भगवान
कृष्ण दशमी को मेले के दिन जैनेतर भी विपुल मात्रा की आती है। यहाँ प्रभु के चरण दर्शनार्थ स्थापित
में आते हैं ।