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धर्मशाला है, जहाँ पीने के गरम व ठंडे पानी की सुविधा है । प्रत्येक यात्री को लौटते वक्त यहाँ पेढ़ी की तरफ से भाता दिया जाता है। यहाँ से चढ़ाई कुछ कठिन है । लेकिन घबराने की आवश्यकता नहीं । हिम्मत से चढ़िये । आप प्रफुल्लता के साथ वापस उतरेंगे । थोड़ी दूर आगे जाने पर दो रास्ते फंटते हैं। बायें हाथ का राह श्री गोतम स्वामीजी की ट्रंक होता हुआ जल मन्दिर जाता है व दायें हाथ का डाक बंगला होता हुआ श्री पार्श्वनाथ ट्रंक पहुँचाता है। ये दोनों मार्ग लम्बे हैं व कठिनाई में दोनों समान है । चढ़ते वक्त जल मन्दिर व लौटते वक्त पार्श्वनाथ ट्रंक होकर आना ही अनुकूल होता है ।
जलमन्दिर के मार्ग में आधा मील का रास्ता तय करने पर कल-कल मधुर संगीत की स्वर लहरी गाता हुआ सीता नाला मिलता है जो सदियों से इस भाँति स्वरलहरी गुंजरित करता रहा है। आगे चढ़ाव कुछ और भी कठिन है, जिसे सुगम बनाने के लिए 500 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। लगभग 2.5 मील आगे बढ़ते ही हमारे तीर्थकर भगवन्तों के निर्वाण स्थानों पर निर्मित ट्रॅको के दर्शन होते हैं। कुछ ट्रैके समतल में हैं तो कुछ टेकरियों पर ।
प्रथम ट्रॅक :- लब्धि के दातार भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री गोतमस्वामी की है । इनका निर्वाण स्थल तो राजगृही या गुणाया है परन्तु दर्शनार्थ यहाँ चरण स्थापित हैं। इनके नाम स्मरण मात्र से मनोवांछित कार्य सिद्ध होते हैं। आगे चलने पर दूसरी ट्रैक :- सत्रहवें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ भगवान की आती है । वैशाख कृष्णा प्रतिपदा को हजार मुनियों के साथ भगवान यहाँ से मोक्ष सिधारे हैं। आगे जा पर तीसरी ट्रैक :- श्री ऋषभानन शाश्वत जिन की ट्रॅक आती है । बाद में चौथी ट्रॅक :- श्री चन्द्रानन शाश्वत जिन की ट्रॅक आती है । पश्चात् पाँचवी टँक इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नमिनाथ भगवान की ट्रॅक आती है। यहीं से भगवान वैशाख कृष्णा दशमी को पाँच सौ छत्तीस मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे हैं । आगे चढ़ने पर छठी ट्रॅक :- अठारहवें तीर्थंकर श्री अर्हनाथ भगवान की आती है। यहीं से भगवान मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे हैं । फिर सातवीं टँक :- उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लीनाथ भगवान की आती है। यहाँ से प्रभु फाल्गुन
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श्री कुंथुनाथ भगवान निर्वाण स्थल टँक सम्मेतशिखर
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श्री अरनाथ भगवान निर्वाण स्थल टँक
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सम्मेतशिखर