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________________ श्री महावीर भगवान-लछवाड़ श्री नन्दीवर्धन ने राज्य भार संभाला । प्रभु का दिल ___सबुद्धिराजजी, हेमतिलकगणी, पुण्य कीर्तिगणी आदि श्री संसारिक कार्यों में नहीं लग रहा था जिससे वे हर बड़गाँव (नालन्दा) में विचरे थे तब वहाँ के ठाकुर वक्त व्याकुल रहते थे । भ्राता नन्दीवर्धन से बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने दीक्षा के लिये अनुमति प्रदान रत्नपाल आदि श्रावकों ने सपरिवार क्षत्रियकुण्ड ग्राम की । प्रभु ने राज्य सुख त्यागकर प्रसन्नचित्त वर्षीदान आदि तीर्थ स्थानों की यात्रा की थी जिसका वर्णन देते हुए “ज्ञात खण्ड” उपवन में जाकर वस्त्राभूषण प्रधानाचार्य गुर्वावली में आता है । त्याग करके पंच-मुष्टि लोचकर वि. सं. के 513 वर्ष पन्द्रहवीं शताब्दी में आचार्य श्री लोकहिताचार्यसूरिजी पूर्व मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी के शुभ दिन अति कठोर क्षत्रियकुण्ड आदि की यात्रार्थ पधारने का उल्लेख दीक्षा अंगीकार की । उसी वक्त प्रभु को मनः पर्यव श्री जिनोदयसूरिजी प्रेषित विज्ञप्ति महालेख में मिलता ज्ञान उत्पन्न हुआ । उस समय प्रभु की उम्र 30 वर्ष की है। सं. 1467 में श्री जिनवर्धनसूरिजी द्वारा रचित थी । जब प्रभु ने वस्त्राभुषणों का त्याग किया तब इन्द्र ने देवदुश्य अपर्ण किया । इस प्रकार प्रभु के तीन पूर्वदश चैत्य परिपाटी में क्षत्रियकुण्ड का वर्णन है । कल्याणक इस पावन भूमि में हुए । दीक्षा के पश्चात् सोलहवीं सदी में विद्वान श्री जयसागरोपाध्यायजी द्वारा प्रभु को अनेकों उपसर्ग सहने पड़े । प्रभु ने निडरता, यहाँ की यात्रा करने का वर्णन दशवेकालिकवृति में धर्मवीरता, सहनशीलता, मानवता, निर्भयता व दयालुता मिलता है । मुनि जिनप्रभसूरिजी ने भी अपनी तीर्थ दिखाकर विश्व में मानव धर्म के लिये एक नई ताजगी माला में क्षत्रियकुण्ड का वर्णन किया है । कवि प्रदान की । हंससोमविजयजी द्वारा सं. 1565 में रचित तीर्थमाला कल्प-सूत्र में भी प्रभुवीर की जन्म-भूमि क्षत्रियकुण्ड में भी इसका वर्णन है- अठारहवीं सदी में श्री का वर्णन विस्तार पूर्वक किया गया है । सं. 1352 शीलविजयजी ने इस तीर्थ की बड़े ही सुन्दर ढंग से में श्री जिनचन्द्रसूरिजी के उपदेश से वाचक राजशेखरजी,
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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