________________
हुआ । (दि.मान्यतानुसार गर्भ का स्थानान्तर नहीं हुआ ही झटके से अलग कर दिया । वही देव बालक बनकर माना जाता है) गर्भ काल के दिन पूर्ण होने पर माता इनके खेल क्रीड़ा में शामिल हुआ हारने पर उसे घोड़ा त्रिशला ने वि. सं. के 543 वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला बनना पड़ा । उसपर ज्यों ही प्रभु असवार हुए कि त्रयोदशी को अर्द्ध रात्री के समय सिंह लक्षण वाले पुत्र विराट व भयानक रूप करके वायुवेग से दौड़ने को जन्म दिया । इन्द्रादि देवों ने प्रभु को मेरू पर्वत लगा । प्रभु का मुष्टि प्रहार होते ही वह शान्त हो पर ले जाकर जन्माभिषेक महोत्सव अति ही आनन्द गया। देवने विनयपूर्वक वन्दन करते हुए प्रभु को वीर व उल्लास पूर्वक मनाया । राज दरबार में भी बधाइयाँ नाम से संबोधित किया इस कारण प्रभु महावीर भी बंटने लगी । कैदियों को रिहा किया गया । जन कहलाए । प्रभु निडर व वीर तो थे ही विद्या में भी साधारण में खुशी की लहर लहराने लगी । प्रभु का निपुण व ज्ञानवान थे । जिसका वर्णन देव द्वारा माता त्रिशला की गर्भ में प्रविष्ट होने के पश्चात् समस्त पाठशाला में उनके उपाध्याय के सन्मुख पूछे गये प्रश्नों क्षत्रियकुण्ड राज्य में धन-धान्यादि की वृद्धि होकर चारों आदि में मिलता है । तरफ राज्य में सुख शान्ति बढ़ी जिस कारण जन्म से प्रभु की इच्छा शादी करने की न होने पर भी उनके बारहवें दिन प्रभु का नाम वर्द्धमान रखा । (दि. माता-पिता की प्रसन्नता के लिये राजा समरवीर की मान्यतानुसार प्रभु का जन्म वैशाली के अन्तर्गत
पुत्री श्री यशोदा देवी के साथ उनका विवाह सम्पन्न वासुकुण्ड में या नालन्दा के निकट कुण्डलपुर में हुआ। हुआ । (दि. मान्यता में शादी नहीं हुई मानी जाती है) बताया जाता है ।
श्री यशोदा देवी की कुक्षी से प्रियदर्शना नाम की कन्या श्री वर्द्धमान बचपन से ही वीर व निडर थे । एक का जन्म हुआ, जिसका विवाह श्री जमाली नामक बार प्रभु अपने मित्रों के साथ आमलकी क्रीड़ा कर रहे राजकुमार के साथ हुआ । जमाली प्रभु की बहिन थे । तब एक देव सर्प का रूप धारण कर झाड़ से सुदर्शना के पुत्र थे । प्रभु 28 वर्ष के हुए तब लिपट गया । प्रभु ने निडरता से सर्प को पकड़कर एक उनके माता-पिता का देहान्त हुआ एवं प्रभु के भ्राता
लछवाड मन्दिर का दृश्य - क्षत्रियकुण्ड