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व्याख्या की है । सं. 1750 में सौभाग्यविजयजी ने भी अपनी तीर्थ माला में यहाँ का वर्णन किया है। इस प्रकार यहाँ का वर्णन जगह-जगह पाया जाता है। वर्तमान में पहाड़ी पर यही एक मन्दिर है जिसे जन्मस्थान कहते हैं ।
निकट ही अनेकों प्राचीन खण्डहर पड़े हैं जो कुमारग्राम, माहणकुण्डग्राम, ब्राह्मणकुण्डग्राम, मोराक आदि प्राचीन स्थलों की याद दिलाते हैं ।
तलहटी में दो मन्दिर हैं, जिन्हें च्यवन व दीक्षा कल्याणक स्थलों के नाम से संबोधित किया जाता है।
विशिष्टता * इस पवित्र भूमि में वर्तमान चौबीसी के चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान के च्यवन जन्म व दीक्षा आदि तीन कल्याणक होने के कारण यहाँ की महान विशेषता है । प्रभु ने अपने जीवनकाल के तीस वर्ष इस पवित्र भूमि में व्यतीत किये । अतः इस स्थान की महत्ता का किन शब्दों में वर्णन किया जाय ।
यहाँ के जन्म स्थान का मन्दिर ही नहीं अपितु इस पवित्र भूमि का कण-कण पवित्र व वन्दनीय है । आज भी यहाँ का शान्त व शीतल वातावरण मानव के हृदय में भक्ति का स्रोत बहाता है । यहाँ पहुँचते ही मनुष्य सारी सांसारिक व व्यवहारिक वातावरण भूलकर प्रभु भक्ति में लीन हो जाता है । इसी पवित्र भूमि में प्रभु की, आत्म कल्याण व विश्व कल्याण की भावना प्रबलता से उत्तेजित हुई थी । कहा जाता है उस समय जगह-जगह यवनों आदि का जोर वढ़ता आ रहा था । धर्म के नाम पर निर्दोषी जीवों की बलि दी जाती थी। नारी को दासी के स्वरूप माना जाता था । दास-दासियों की प्रथा का जोर बढ़ता आ रहा था, निर्बल नर-नारियों को दास-दासियों के तौर पर आम बाजार में बेचा जा रहा था । जिनके पास ज्यादा दास-दासियाँ रहती थीं उन्हे पुण्यशाली समझा जाता था । प्रभु ने आत्म कल्याण एवं विश्व कल्याण के लिये उत्तेजित हुई भावना को साकार रूप देने का निश्चय करके राजसुख को त्यागा व दीक्षा लेकर आत्मध्यान में लीन हो गये ।
अनेकों प्रकार के अति कठिन उपसर्ग सहन करके प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया । प्रभु ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, व अपरिग्रह को महान धर्म ही नहीं परन्तु मानव धर्म बताया जिनके अनुकरण मात्र से ही आत्मा को शांति मिल सकती है । आज के युग में भी मानव समाज इन तत्वों के अनुसरण की आवश्यकता महसूस कर रहा है । प्रभु ने नारी को भी धर्म प्रचार करने का अधिकार दिया । प्रभु ने जाति भेद का तिरस्कार किया व विश्व के हर जीव-जन्तु के प्रति करुणा का उपदेश दिया । यह सब श्रेय इसी पवित्र भूमि को है जहाँ हमारे देवाधिदेव प्रभु का जन्म हुआ व उनकी असीम कृपा के कारण आज जैन धर्म विश्व का एक महान धर्म बना हुआ है व उसके सिद्धान्तों के अनुकरण की विश्व आज भी आवश्यकता महसूस कर रहा है । भगवान महावीर की वाणी आज भी हर मानव, पशु, पक्षी आदि के लिये कल्याणकारी है व हमेशा के लिये कल्याणकारी रहेगी ।
अन्य मन्दिर * वर्तमान में क्षत्रियकुण्ड पहाड़ पर यही एक मन्दिर है । यहाँ की तलहटी कुण्डघाट में दो छोटे मन्दिर हैं जहाँ वीर प्रभु की प्रतिमाएँ विराजित हैं । इन स्थानों को च्यवन व दिक्षा कल्याणक स्थानों के नाम से संबोधित किया जाता है । लछवाड़ में एक मन्दिर हैं । ये सारे श्वेताम्बर मन्दिर हैं ।
कला और सौन्दर्य के यहाँ प्रभु वीर की प्राचीन प्रसन्नचित्त प्रतिमा अति ही कलात्मक व दर्शनीय है । प्रतिमा के दर्शन मात्र से मानव की आत्मा प्रफुल्लित हो उठती है । तलहटी से 5 कि. मी. पहाड़ पर का प्राकृतिक दृश्य अति ही मनोरंजक हैं ।
* नजदीक के रेल्वे स्टेशन लखीसराय, जमुई व कियुल ये तीनों लछवाड़ से लगभग 30-30 कि. मी. है । इन स्थानों से बस व टेक्सी की सुविधा है । सिकन्दरा से लछवाड़ लगभग 10 कि. मी. है, यहाँ पर भी बस व टेक्सी की सुविधा है । लछवाड़ से तलहटी (कुण्डघाट) 5 कि. मी. व तलहटी से क्षत्रियकुण्ड 5 कि. मी. है । लछवाड़ में धर्मशाला