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श्री आदिनाथ भगवान-मांगीतुंगी
श्री मांगी तुंगी तीर्थ
जल कर भस्म हुई तब भावी तीर्थंकर श्री कृष्ण एवं श्री बलराम यहाँ आये थे और इसी गहन जंगल में
जरद् कुमार द्वारा चलाये बाण लगने के कारण तीर्थाधिराज * श्री आदीश्वर भगवान, श्वेत
श्री कृष्ण का देहान्त हुआ था । इन्हीं पर्वतों के वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 1.37 मीटर (दि. मन्दिर)।
मध्य उनके भ्राता श्री बलरामजी ने श्री कृष्ण का
अन्तिम संस्कार किया था जहाँ पर उनका स्मारक अभी तीर्थ स्थल * जंगल में एक ऊँचे पहाड़ पर जिसे
भी मौजूद है । बाद में बलरामजी इस संसार को गालना पहाड़ कहते है । समुद्र की सतह से 1371
असार समझकर, इसी घोर जंगल में तपश्चर्या करते मीटर (4500 फुट) की ऊँचाई पर यह तीर्थ
हुए पंचम स्वर्ग सिधारे । स्थित है ।
___जंगल से घिरे पहाड़ पर जो दो शिखर दिखायी देते प्राचीनता * इस तीर्थ की प्राचीनता एवं काल का
हैं वे 'मांगी' और 'तुंगी' नाम से प्रसिद्ध हैं । मार्ग पता लगाना कठिन है । इस पहाड़ पर स्थित मूर्तियों,
__ बहुत ही भयानक है । पहाड़ पर अनेकों गुफाएँ हैं गुफाओं, जलकुण्ड, एवं अर्ध मागधी लिपि में लिखे
जिनमें अनेकों कलापूर्ण जिन प्रतिमाएँ हैं । गुफाओं में लेखों से यह प्रतीत होता है कि यह तीर्थ हजारों वर्ष
एक गुफा 'डोंगरिया देव' नाम से प्रसिद्ध है । प्राचीन है ।
आदिवासी लोग भी यहाँ की यात्रा कर, अपने को विशिष्टता * कहा जाता है कि यहीं से मर्यादा कृतार्थ समझते हैं । यहाँ के निकट कंचनपुर का किला, पुरुपोत्तम श्री रामचन्द्रजी पवनसुत श्री हनुमानजी तथा मुल्हरे का किला व गाँव ऐतिहासिक है । विक्रम सं. श्री सुग्रीवजी एवं अनेकों मुनिगण मोक्ष को प्राप्त हुए 1822 तक मुल्हरें नगर में सैकड़ों जैन श्रावकों के घर ये । एक किंवदन्ति के अनुसार जब द्वारका नगरी थे व स्थल जाहोजलालीपूर्ण था । कहा जाता है, किसी 214