SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन बंधुओं को मालुम पड़ने पर दर्शनार्थ आने वालों श्री बलसाणा तीर्थ की संख्या निरन्तर बढ़ने लगी । यह प्रतिमा प्रभु श्री विमलनाथ भगवान की अतीव सुन्दर व प्रभावशाली तीर्थाधिराज * श्री विमलनाथ भगवान, श्याम है । प्रतिमा प्रकट होने के पश्चात् पटेल के परिवार में वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 77 सें. मी. (श्वे. मन्दिर)। ही नही अपितु सारे गांव में शांती व उन्नतिका तीर्थ स्थल * बलसाणा गाँव में । वातावरण फैलने लगा । यहाँ के निकट गाँव के जैन प्राचीनता * आज का छोटासा बलसाणा गांव समाज वाले पटेल परिवार से प्रतिमा प्रदान करने हेतु किसी समय खानदेश के इस सप्तपुड़ा पहाड़ी इलाके अनुरोध कर रहे थे परन्तु पटेल परिवार नहीं देना में नदियाँ से घिरा एक विराट नगर रहने का चाहता था । उल्लेख है । प्रतिमा की शिल्पकला से प्रतीत होता है कि यह आज भी यहाँ-तहाँ स्थित प्राचीन मन्दिरों आदि के प्रतिमा कम से कम 1500 वर्ष प्राचीन तो अवश्य है कलात्मक भग्नावशेष यहाँ के गौरव पूर्ण गरिमामयी अतः यहाँ 1500 वर्ष पूर्व मन्दिर अवश्य था इसमें प्राचीनता की याद दिलाते हैं । कोई सन्देह नहीं । संभवतः उस वैभवपूर्ण समय में यहाँ कई जैन । कोई दैविक संकेत से निकट गांव में चातुर्मासार्थ मन्दिर भी अवश्य रहें होंगे जैसे हर प्राचीन स्थलों पर विराजित वर्धमान तपोनिधि प. पू आचार्य भगवंत श्रीमद् पाये जाते हैं । विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी म. साहब के प्रशिष्य प. पु. गणीवर्य श्री विधानन्दविजयजी म.सा. को यहाँ दर्शनार्थ भाग्योदय से एक पटेल परिवार को यहाँ अपने घर आने की भावना हुई व यहाँ पधारे । इनके उपदेश से के निकट की एक टेकरी में से प्रभु प्रतिमा प्राप्त हुई। प्रभावित होकर पटेल परिवार व गांव वालों ने प्रतिमा पटेल परिवार अतीव हर्षोल्लासपूर्वक अपने घर में देने की सहर्ष मंजूरी प्रदान की परन्तु उनकी शर्त थी विराजमान करवाकर अपने ढंग से भावपूर्वक पूजा-अर्चना कि मन्दिर यहीं पर बने । करता रहा । यहाँ से प्रकट हुवे प्रभु को भी संभवतः यहीं पुनः विमलनाथ जिनालय दुर दृश्य-बलसाणा 212
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy