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श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ (श्वे.)-कलिकुण्ड
है पार्श्व प्रभु का इस क्षेत्र में भी पदार्पण हुवा हो व उनकी अमृतमयी वाणी से यहाँ की जनता लाभान्वित हुई हो । जैसा प्रभु का गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि तरफ विहार होने का उल्लेख आता है ।
यह भी कहा जाता है कि श्री पार्श्व प्रभु अपने विहार में एक समय एक पहाड़ी के पास कुण्ड के निकट ध्यानावस्थ रहे थे, पश्चात् उस स्थान पर राजा दाधिवाहन ने मन्दिर का निर्माण करवाकर उसका नाम
कलिकुण्ड रखा था । उस समय वहाँ के जंगल का एक हाथी प्रभु की सेवा में रहा था ।
इस क्षेत्र में आज भी अनेक पहाड़ियाँ, कुण्ड व हाथी पाये जाते हैं जितने अन्यत्र सायद नहीं है ।
उक्त विषय पूरा संशोधन का है लेकिन कुछ भी हो यहाँ का इतिहास लगभग दो हजार वर्ष पूर्व का अवश्य है । विशिष्टता * समुद्र के किनारे मलैयागिरि के पहाड़
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