________________
51869
श्री आदिनाथ भगवान (श्वे.) कलिकुण्ड
श्री कलिकुण्ड तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 35 सें. मी. ( श्वे. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल * कलिकट शहर के मध्य । प्राचीनता यह मन्दिर लगभग पाचं सोह वर्ष से पूर्व का माना जाता है, परन्तु इसकी प्राचीनता का पता लगाना कठिन है, क्योंकि कहीं भी कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है ।
प्रभु प्रतिमा तो बहुत ही प्राचीन प्रतीत होती है । प्रतिमाजी पर भी कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। प्रभु को भक्तगण प्रारंभ से श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ संबोधित करते आ रहे है ।
आजका कलिकट पूर्व में कोजीकोड, कोलीकोड़ आदि नामों से विख्यात था, अब पुनः कोलीकोड कहते है ।
भारत में जगह-जगह कलिकुण्ड पार्श्वनाथ नाम का उल्लेख आता है कहा जाता है कि श्री पार्श्वनाथ भगवान कलि नाम के पहाड़ व कुण्ड नाम के सरोवर के निकट ध्यानस्थ रहे थे, उस जगह राजा दधिवाहन ने मन्दिर का निर्माण करवाकर उसका नाम कलिकुण्ड
196
रखा था । परन्तु अभी तक सही जगह व इतिहास का पता नहीं लग रहा है । यह जरूर है कि प्रायः चमत्कारिक घटनाओं के कारण उस उस गाँव के नाम पर प्रभु को उसी नाम से संबोधित करते आ रहे है या प्रभु के नाम पर ही गांव का नाम रख दिया जाता है।
प्रभु प्रतिमा की प्राचीनता व वर्षों से इसी नाम से संबोधित किये जाने के कारण व नाम में लगभग समानता रहने के कारण संभवतः यही कलिकुण्ड पार्श्वनाथ का मूल स्थान हो यह अनुशंधान का विषय है ।
लगभग 85 वर्ष पूर्व इसी मन्दिर के परकोटे में यहाँ पर एक अन्य नये मन्दिर की नींव खोदती वक्त 34 प्राचीन जिन प्रतिमाऐं भूगर्भ से प्राप्त हुई थी जो अभी भी यहाँ श्री आदीश्वर भगवान के मन्दिर में विराजित है। श्री आदीश्वर प्रभु की प्रतिमा सम्प्रति कालीन मानी जाती है । अन्य प्रतिमाएँ भी अति प्राचीन हैं । किन्हीं पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है । इससे यह सिद्ध होता है कि यहाँ अन्य प्राचीन मन्दिर भी रहे हैं । दक्षिण प्रांतों में भी जगह-जगह प्राचीन जिन प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त होती है। इस केरला प्रांत में भी जगह-जगह अनेकों जिन प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त होने का उल्लेख है । परन्तु दक्षिण प्रांत में सम्प्रतिराजा कालीन प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त होने का यह प्रथम अवसर है ।
एक उल्लेखानुसार जब बिहार प्रांत में बारह वर्षीय भीषण अकाल पड़ा तब आर्य भद्रबाहु स्वामी ने अपने 12000 शिष्य मुनिगणों के साथ दक्षिण में आकर श्रवणबेलगोला में निवास किया था। उनके मुनिगण कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल में धर्मप्रचारार्थ जाकर रहे थे, जिन्होंने धर्म प्रभावना के अनेकों कार्य किये । यहाँ की भाषाओं के उत्थान में भी अपना योगदान दिया । कई ग्रंथों की स्थानीय भाषाओं में रचनाएँ की जो आज भी मौजूद है व उच्च स्तर की प्राचीनतम मानी जाती है । परन्तु साथ में यह भी कहा जाता है कि उनके यहाँ आने के पूर्व भी यहाँ श्रमण संस्कृति विद्यमान थी व श्रमण समुदाय के लोग यहाँ रहते थे । कलिंग देश के राजा करकण्डु का सामराज्य लगभग पूरे दक्षिण भारत तक रहने व राजा करकण्डु श्री पार्श्वप्रभु का परम भक्त रहने के कारण हो सकता