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पर बसे इस प्रांत में कई जगह प्राचीन जिन प्रतिमाएं भूगर्भ से प्राप्त होने के कारण पता लगता है कभी यह शहर ही नहीं अपितु पूरा प्रांत जैन श्रेष्ठीगणों की अच्छी आबादी के साथ व्यापार का बड़ा केन्द्र भी रहा होगा ।
यहाँ पर प्रायः सभी जगह समुद्र या पहाड़ी रास्ते से ही आना-जाना होता था जिनमें एक पहाड़ी रास्ता कर्नाटक होता हुवा महाराष्ट्र तरफ बम्बई तक, दूसरा कर्नाटक होता हुवा तमिलनाडु तरफ व तीसरा कर्नाटक होता हुवा आन्ध्रा तरफ । अतः हो सकता है सैकड़ो वर्ष पूर्व कभी भीषण बाढ, ज्वारा या भूकंम्प के कारण यह स्थान विच्छेद हो गया हो व भक्तजनों द्वारा इस स्थान के विच्छेद हो जाने के कारण इसी नाम की कुछ प्रतिमाएं भराई हो जिनमें एक प्रतिमा अभी भी धोलका तीर्थ पर विराजित है । परन्तु नाम में प्रायः समानता रहने के कारण यह संभव है कि कलिकुण्ड पार्श्वनाथ का मूल स्थान यही हो । यह यहाँ की मुख्य विशेषता है । परन्तु संशोधन की आवश्यकता है।
अन्य मन्दिर * वर्तमान में इसके अतिरिक्त अन्य एक और श्वेताम्बर मन्दिर हैं ।
कला और सौन्दर्य * श्री कलिकुण्ड पार्श्वप्रभु की
प्रतिमा अतीव सौम्य व प्रभावशाली है । यहाँ के आदीश्वर भगवान के मन्दिर में विराजित संम्प्रति कालीन प्राचीन प्रतिमाएं भी अतीव कलात्मक व दर्शनीय है । मन्दिर की निर्माण शैली भिन्न व अनौखी है । केरला में प्रायः सभी मन्दिर इसी शैली के है ।
मार्ग दर्शन * मन्दिर से यहाँ का कलिकट रेल्वे स्टेशन लगभग 12 कि. मी. व बस स्टेण्ड लगभग एक कि. मी. दूर है । स्टेशन पर व गांव में आटो व टेक्सी का साधन है । मन्दिर से लगभग 30 मीटर दूर बस व 15 मीटर दूर तक कार जा सकती है । लेकिन मन्दिर तक पक्की सड़क है । यहाँ से बडगरा 50 कि. मी मेंगलूर 200 कि. मी. सोरनूर 100 कि. मी. व कोचीन लगभग 200 कि. मी. दूर है ।
सविधाएँ * ठहरने हेतु महाजनवाडी है जहाँ ओढ़ने बिछाने के वस्त्र, बिजली, पानी व बर्तन का साधन है । लगभग 200 यात्री ठहर सकते है । वर्तमान में भोजनशाला नहीं है परन्तु पूर्व सूचना पर इंतजाम हो सकता है ।
पेढी * शेठ आनन्दजी कल्याणजी जैन टेम्पल ट्रस्ट, त्रिकोविल लेन । पोस्ट : कलिकट -673 001. प्रान्त : केरला, फोन : 0495-704293.
श्री कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय (श्वे.)-कलिकुण्ड
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