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श्री तिरुमलै तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री नेमिनाथ भगवान, श्याम वर्ण, कायोत्सर्ग मुद्रा, लगभग 5 मीटर (दि. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल * तिरुमलै गाँव के पास 300 फुट ऊँची पहाड़ी पर समुद्र की सतह से लगभग एक हजार फुट ऊँचाई में ।
प्राचीनता * शास्त्रों में इसके प्राचीन नाम वैगै, वैगाऊर, श्रीशैलम, श्रीपुरम, पलकुण्ड्रैकोडम, चन्द्रगिरि, चारणगिरि, वेल्लीमलै आदि पाये जाते है ।
भगवान श्री नेमिनाथ का यहाँ भी समवसरण रचा गया था ऐसी जनश्रुति है। कहा जाता है पाण्डवों का जब इस भूमि में आगमन हुआ तब उन्होंने दर्शन हेतु इस प्रतिमा का निर्माण करवाया था ।
आठ हजार श्रमण मुनियों का यहाँ विहार हुआ माना जाता है । चोल व पल्लव शासकों के शासनकाल में यह क्षेत्र अत्यन्त जाहोजलाली पूर्ण रहा । प्रथम चोल राजा की बहन राजकुमारी कुन्दवै ने भी यहाँ
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मन्दिर का निर्माण करवाकर श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था, जो आज भी यहाँ विद्यमान है व कुन्दवै जिनालय के नाम से प्रचलित है।
चोल व पल्लवकालीन पचास से भी अधिक शिलालेख अभी भी यहाँ उपलब्ध हैं, जिनमें एक शिलालेख में पल्लव नरेश की रानी सिन्नवई द्वारा दीपदान का निर्देश है । दूसरे एक शिलालेख में कुन्दवै जिनालय के लिये भेंट देने का उल्लेख है । ये शिलालेख ई. सं. 1023-24 के बताये जाते हैं । इन शिलालेखों से यह सिद्ध होता है कि यह क्षेत्र उससे पूर्वकाल का है। वर्तमान में यह क्षेत्र पुरातत्व विभाग की देख-भाल में है, लेकिन जैन-विधि पूर्वक पूजा होती है ।
विशिष्टता * श्री नेमिनाथ भगवान का यहाँ भी समवसरण रचा गया माना जाने के कारण यहाँ की मुख्यतः विशेषता है ।
यह प्रतिमा पाण्डवों द्वारा निर्मित बताई जाती है । चोल व पल्लव जैन राजाओं के शासन काल में यह प्रमुख जाहोजलाली पूर्ण क्षेत्र रहा है, जिनके अनेकों (ई. सं. 910) व प्रथम राजेन्द्रचोल (ई. सं. 984-1014)
श्री नेमिनाथ जिनालय (दि.) तिरुमलै