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श्री महावीर भगवान -पोनूरमलै
श्री पोन्नूरमलै तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 75 सें. मी. (दि. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल * वन्दवासी चेतपेट मार्ग में स्थित पोनूरमलै की तलेटी में ।
प्राचीनता * इस तीर्थ की प्राचीनता ई. प्रथम शताब्दी के प्रारम्भ से होने का उल्लेख मिलता है । उस समय प्रसिद्ध आचार्य कल्प श्री कुन्दकुन्द आचार्य जैसे
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प्रकाण्ड विद्वान आचार्य ने इसे अपनी तपोभूमि बनाया, तो हो सकता है कि उसके पूर्व भी यहाँ कई मुनियों ने निवास किया हो ।
वर्तमान में यहाँ पोन्नूरमलै की तलेटी में यही एक मन्दिर है व पहाड़ पर श्री कुन्दकुन्दाचार्य के चरण चिन्ह स्थापित हैं ।
विशिष्टता * दिगम्बर मान्यतानुसार श्रुतधर आचार्य की परम्परा में श्री कुन्दकुन्दाचार्य का नाम महत्वपूर्ण है । इनकी गणना ऐसे युग संस्थापक आचार्यों के रूप में की गई जिससे भविष्य में आनेवाली परम्परा कुन्दकुन्द आम्नाय के नाम से प्रसिद्ध हुई । किसी भी मंगलमय कार्य को प्रारम्भ करते समय इनका स्मरण किया जाता है । मंगल स्तवन का प्रसिद्ध श्लोक इस प्रकार है :
मंगलम् भगवान वीरो, मंगलम् गौतमो गणी । मंगलम् कुन्दकुन्दार्यों, जैनधर्मोस्तु मंगलम् ।।
इस प्रकार आचार्य भगवन्त श्री कुन्दकुन्दाचार्य की यह तपोभूमि होने के कारण यहाँ की महान विशेषता है । ये द्राविड़ संघ के एक महान मुनिपुंगव थे । शास्त्रों में इनका नाम ऐलाचार्य भी बताया है । इनका जन्म आन्ध्र प्रदेश के गुण्टकल नगर के निकटस्थ कोण्डकोण्डा नामक गाँव में हुआ था । भगवन्त ने इस भूमि को अपनी तपोभूमि बना कर यहाँ का ही नहीं अपितु तमिलनाडु का भी गौरव बढ़ाया है । यह भी कहा जाता है कि तमिल साहित्य के जन प्रचलित प्रमुख "तिरुक्कुरल ग्रन्थ की रचना भी इन्होंने ही की थी ।
ऐसे प्रतिभाशाली, अध्यात्मिक आचार्य भगवन्त ने इसे अपनी तपोभूमि बनाकर यहाँ के वायुमण्डल को पवित्र बनाने के साथ-साथ यहाँ के कण-कण को पूजनीय बनाया है । शास्त्रों में इनके अन्य नाम वक्रग्रीव, ऐलाचार्य, गृद्धपिच्छ, पद्मानन्दी भी बताये जाते हैं ।
शास्त्रों में इस प्रदेश को मलयप्रदेश, पर्वत को नीलगिरि व पोन्नूर गाँव को हेमग्राम नाम से संबोधित किया है । वर्तमान में पूर्वतटीय पर्वतमालाओं से वेष्ठित दक्षिण आर्काडु और उत्तर आर्काडु जिले के विशालतम भूभाग को मलयप्रदेश, नीलगिरि पर्वत को पोन्नूरमलै व हेमग्राम को पोन्नूर गाँव बताया जाता है। आचार्य