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________________ श्री विजयमंगलम तीर्थ तीर्थाधिराज * श्री चन्द्रप्रभ भगवान, श्याम वर्ण, अर्द्ध, पद्मासनस्थ, लगभग 30 सें. मी. (दि. मन्दिर)। तीर्थ स्थल * विजयमंगलम गाँव के उत्तरी भाग के वस्तिपुरम (मोटैकोपुरम) में विशाल परकोटे के बीच । प्राचीनता * छठी सदी में यह प्रदेश कोंगुनाडु के चौबीसी नगरों में मुख्य नगर था । कोंगुनाडु की राजधानी यहीं पर थी । यहाँ के राजा कोंगुवेलिर थे, जिन्होंने इस विशाल व कलात्मक मन्दिर का निर्माण करवाया था - ऐसा उल्लेख है । यह करुम्बुनाडु नाम से भी प्रचलित था । प्राचीन काल में यह मन्दिर वीरसंघातपेरुंपल्लि नाम से प्रचलित था-ऐसा उल्लेख है। आज मन्दिर का कार्यभार पुरातत्व-विभाग की देख-रेख में है । लेकिन जैन विधि पूर्वक आज भी पूजा होती है । मन्दिर के जीर्णोद्धार की अतीव आवश्यकता है । विशिष्टता * ई. की छठी शताब्दी में तमिल कोविदों का यहाँ संघ था । उन पाँच कौविदों की मूर्तियाँ भी यहाँ पर स्थित हैं । पेरुंकदै नामक प्राचीन तमिल प्रमुख ग्रन्थ की रचना यहीं पर हुई थी । ___कोंगुनाडु के राजा श्री कोंगुवेलिर ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया था, जो आज भी उनके धर्मभावना की याद दिलाता है । वर्तमान में स्थानीय लोग इसे अमनेश्वर मन्दिर कहते हैं । अन्य मन्दिर * वर्तमान में इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं है । लगभग 13 कि. मी. दूर चितांपुरम में एक मन्दिर व सिंगलूर में एक मन्दिर है। ___ कला और सौन्दर्य * मन्दिर की निर्माण कला अति सुन्दर हैं । द्वार के ऊपर का उत्तुंग शिखर दूर से श्री चन्द्रप्रभु जिनालय-विजयमंगलम 180
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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