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चूलामणि निगण्डु नामक तमिल ग्रन्थ के रचयिता वीर मण्डलपुरुष के गुरु श्री गुणभद्राचार्य ने यहीं पर संघ की स्थापना की थी व यह संघ तमिलनाडु में धर्म-प्रचार के लिए यत्र-तत्र भ्रमण करने में अनुबद्ध था । उन्हें वीरसंघ प्रतिष्ठाचार्य की उपाधि से अलंकृत किया गया था । उपरोक्त वर्णन यहाँ पर स्थित सोलहवीं सदी के शिलालेख में उल्लिखित हैं ।
प्रति वर्ष वैशाख शुक्ला दशमी से पूर्णिमा तक मेला लगता है । उस अवसर पर अन्यान्य भागों के जैन-जैनेतर भाग लेते हैं । यह अतिशय क्षेत्र भी माना जाता है । यहाँ आने पर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं-ऐसा भक्त-जनों द्वारा अभिहित किया जाता है । लगभग 10 वर्षों पूर्व कुछ जीर्णोद्धार का कार्य हुवा है ।
अन्य मन्दिर * वर्तमान में इसके अतिरिक्त और कोई मन्दिर नहीं है ।
कला और सौन्दर्य * इस त्रिशिखरीय मन्दिर का दृश्य चार मील की दूरी से भी अत्यन्त शोभायमान लगता है । ये तीनों शिखर चोल राजवंशीय कला के नमूने, आदर्श व अत्युत्तम प्रतीक के रूप में स्थित हैं। इसी मन्दिर में श्री चन्द्रप्रभ भगवान की प्रतिमा भी अत्यन्त प्रभावशाली है । शिखरों पर मण्डित अनेक देव-दिव्यांगनाओं के मूर्तियों की कला आकर्षक है । ___ मार्ग दर्शन * यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन उलन्दूरपेट, मद्रास-तिरूच्चि रेल व सड़क मार्ग पर स्थित है । जहाँ से इस क्षेत्र की दूरी लगभग 16 कि. मी. है । उलुन्दूरपेट से तिरूवेण्णैनल्लूर मार्ग पर पिल्लैयार कुप्पम गाँव से लगभग 5 कि. मी. है । उलुन्दूरपेट में बस व टेक्सी की सुविधा है । चेन्नई से इस तीर्थ की दूरी लगभग 200 कि. मी. है । छोटी सी पहाड़ी चढ़ने के लिए पगथिये बने हुए है ।
सुविधाएँ * ठहरने के लिए तलहटी में धर्मशाला हैं, जहाँ पर पानी, बिजली की सुविधा हैं ।
पेढ़ी * श्री पार्श्वनाथ भगवान दिगम्बर जैन मन्दिर, श्री जिनगिरि तीर्थ, पोस्ट : तिरुनरुंकोण्डै -606 102. तालुका : उलुन्दूरपेट, व्हाया : कलमरुतुर, जिला : साउथ आरकाट, प्रान्त : तमिलनाडु,
श्री पार्श्वनाथ भगवान-जिनगिरि
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