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श्री जम्बुस्वामी भगवान चरण चौरासी (इन्द्रपुर)
श्री इन्द्रपुर तीर्थ
श्री जम्बुस्वामी भगवान (दि.)-मन्दिर-चौरासी (इन्द्रपुर)
तीर्थाधिराज * 1. भगवान श्री महावीर के द्वितीय पट्टधर अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामीजी, चरणपादुकाएँ, लगभग 30 सें. मी. (दि. मन्दिर) ।
2. श्री पार्श्वनाथ भगवान, (श्वे. मन्दिर) ।।
तीर्थ स्थल * मथुरा से लगभग 4 कि. मी. दूर चौरासी में (दि. मन्दिर) ।
मथुरा शहर (धीयामंडी में श्वे. मन्दिर) । प्राचीनता * यह तीर्थ-क्षेत्र सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के समय का माना जाता है । प्राचीन काल मे यह शहर मधुपुरी, मधुरा, मधुलिका, इन्द्रपुर आदि नामों से संबोधित किया जाता था । यहाँ पर देवों द्वारा निर्मित श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का रत्नोंजड़ित स्वर्णिम विशाल स्तूप था । भगवान श्री पार्श्वनाथ के काल में इसे ईटों से ढंके जाने व पास ही में एक मन्दिर निर्माण करवाने का उल्लेख 'बृहत कल्पसूत्र' में मिलता है । राजा श्री उग्रसेन की यह राजधानी थी । अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामीजी अन्तिम धर्मदेशना देते हुए यही से मोक्ष सिधारे थे ।
विक्रम की आठवीं सदी में आचार्य श्री बप्पभट्टसूरीश्वरजी द्वारा यहाँ देव निर्मित स्तूप के जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख हैं । चौदहवीं सदी में श्री जिनप्रभसूरीश्वरजी द्वारा रचित 'विविध तीर्थ कल्प' में इस नगरी को बारह योजन लम्बी व नव योजन चौड़ी बताई है । यहाँ अनेकों जिनालय वाव, कुएँ, देवालय व बाजार आदि रहने का उल्लेख किया है।
आचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी यहाँ संघ सहित पधारे तब यहाँ श्री सुपार्श्वनाथ भगवान व श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिरों व श्री जम्बूस्वामी, प्रभस्वामी आदि 527 साधु-साध्वियों के स्तूप रहने का उल्लेख है ।
अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामीजी के समय यहाँ 84 वन थे । श्री जम्बूस्वामीजी यहाँ के जम्बूवन में तपश्चर्या करते हुए मोक्ष सिधारे थे ।
दि. मन्दिर में प्रतिष्ठित श्री जम्बूस्वामी महाराज की प्राचीन चरण-पादुकाएँ भरतपुर के एक श्रावक को आये स्वप्न के आधार पर खोज करने से इस स्थान पर भूगर्भ से प्राप्त हुई थी ।
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