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विशिष्टता * सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के समय में धर्मरुचि व धर्मघोष नामक दो मुनि थे । वे विहार करके मथुरा आकर भूतरमण उपवन में कठोर तपश्चर्या करने लगे । तपस्या से प्रभावित होकर उस वन की अधिष्ठात्री देवी कुबेरा चरणों में आकर वरदान माँगने के लिए अरदास करने लगी । मुनियों को किसी प्रकार की आकांक्षा नहीं थी। देवी ने स्वप्तः सोने और रत्नों से जड़ित, तोरणमाला से अलंकृत, शिखर पर तीन छत्रों से सुशोभित एक स्तूप का निर्माण किया । उसके चारों दिशाओं में पंचवर्ण-रत्नों की मूर्तियाँ विराजमान कीं, जिनमें मूलनायक प्रतिमा श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की थी. इसी स्तूप को श्री पार्श्वनाथ भगवान के समय देवताओं के कहने पर ईटों से ढका गया क्योंकि दुषमा-काल आनेवाला था । इसे देवनिर्मित स्तूप कहने लगे । कुषाणकाल में इसे बोध स्तूप भी कहते थे ।
यहाँ पर अन्य सैकड़ों स्तूप होने का उल्लेख है । अन्यत्र इतने स्तूपों के होने का इतिहास नहीं है ।
यादव वंशी श्री उग्रसेन राजा की यह राजधानी थी। भावी तीर्थंकर श्री कृष्ण का जन्म यहीं पर कारागार में
श्री पार्श्वनाथ भगवान (श्वे.)-इन्द्रपुर हुआ था ।
सती राजुलमती की भी यह जन्मभूमि है। श्री कृष्ण मार्गदर्शन * यहाँ का मथुरा-जन्कशन स्टेशन ने कंस को मल्लयुद्ध में यहीं पछाड़ा था ।
दिगम्बर मन्दिर से लगभग 4 कि. मी. व श्वेताम्बर श्री पार्श्वनाथ भगवान व श्री महावीर भगवान ने मन्दिर से 2 कि. मी. दूर है । जहाँ पर बस, टेक्सी , यहाँ पदार्पण करके इस भूमि को पावन बनाया था । आटो की सुविधा है । यह स्थान दिल्ली-आगरा सड़क __ यहाँ पर कँकाली टीले में प्राचीन जिन प्रतिमाएँ,
मार्ग पर दिल्ली से 145 कि. मी. व आगरा से 54 अवशेष, स्तूप, ताम्रपत्र व अनेकों प्रकार की अमूल्य
कि. मी. है । कार व बस मन्दिरों तक जा सकती है। सामग्री प्राप्त हुई है, जिनके अवलोकन मात्र से यहाँ सुविधाएँ * ठहरने के लिए दिगम्बर मन्दिर के की प्राचीनता व महत्ता महसूस हो जाती है । भूगर्भ निकट सुन्दर धर्मशाला हैं, जहाँ भोजनशाला की भी से निकला हुआ इतना बड़ा खजाना अन्यत्र नहीं है। व्यवस्था हैं । श्वे. मन्दिर के निकट श्वे. धर्मशाला है अनेकों प्रतिमाएँ आदि लखनऊ म्यूजियम में रखी हुई।
परन्तु फिलहाल खास सुविधा नहीं है । हैं । पुरातत्व संबंधी शोधकों के लिए यह महत्वपूर्ण
पेढी * 1. अन्तिम केवली श्री 1008 जम्बूस्वामी स्थान है ।
दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, चौरासी अन्य मन्दिर * इन मन्दिरों के अतिरिक्त मथुरा में
पोस्ट : मथुरा -281 004. जिला : मथुरा,
प्रान्त : उत्तर प्रेदश, फोन : 0565-420983. चार और दिगम्बर मन्दिर हैं । ___ कला और सौन्दर्य * यहाँ प्राचीन जैन कला का
2. श्री पार्श्वनाथ भगवान श्वेताम्बर जैन मन्दिर पेढ़ी,
घीया मण्डी । विपुल भन्डार है । कँकाली टीले जैसे कई टीले मौजूद
पोस्ट : मथुरा - 281 001. हैं, लेकिन अन्वेषण की आवश्यकता है । इन टीलों के
जिला : मथुरा, प्रान्त : उत्तर प्रेदश । अवलोकन मात्र से पूर्व इतिहास का स्मरण हो
फोन : पी.पी 0562-254559 (आगरा) आता हैं ।
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