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________________ जा की जाय तो महत्वपूर्ण प्राचीन अवशेष व अन्य वस्तुओं श्री अहिच्छत्रा तीर्थ के प्राप्त होने की पूर्ण सम्भावना है । ____यह दि. मन्दिर भी अति प्राचीन है । प्रभु-प्रतिमा तीर्थाधिराज *1. श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ के अवलोकन मात्र से इसकी प्राचीनता का अनुमान हो (दि. मन्दिर) । जाता है । श्वे. मन्दिर का निर्माण कार्य चालू हैं। पूर्व तीर्थ स्थल * रामनगर किला गाँव के निकट । उल्लेखित मन्दिरों का पता नहीं संभवतः कालक्रम से प्राचीनता * इस तीर्थ की प्राचीनता युगादिदेव श्री किसी कारण भूमीगत हो गये हो । आदिनाथ भगवान के काल की मानी जाती है । विशिष्टता * युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान के दिगम्बर मान्यतानुसार भगवान आदिनाथ के बाद हुए पश्चात् के तीर्थंकरों की भी यह विहार-भूमि व ग्यारह तीर्थंकरों की भी इसे विहार-भूमि बताया है । चक्रवर्तियो की अधिकार-भूमि होने का सौभाग्य इस इस नगरी के प्राचीन नाम शंखावती, अधिचक्रा, पवित्र स्थल को प्राप्त हुआ है । परिचक्रा, छत्रावती व अहिक्षेत्र आदि बताये जाते है । संकट हरनार तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान किसी समय यह वैभव संपन्न विराट नगरी थी । की तपोभूमि होने के कारण यहाँ की मुख्य इस नगरी का घेराव 48 मील का था । अनेकों मन्दिर, देवालय, बाजार व बड़ी-बड़ी इमारतों से विक्रम से आठवीं सदी पूर्व जब भगवान पार्श्वनाथ सुशोभित थी । आज के आँवला, वजीरगंज व सम्पनी विहार करते हुए इस महानगरी के वन में पधारे तब आदि गाँव इस शहर के अंग थे । महाभारत काल में एक वट-वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ रहे थे । उस समय यह श्री द्रोणाचार्य की राजधानी थी । भगवान पार्श्वनाथ व्यंतरदेव (मेघमाली कमठ) ने पूर्व भव के बैर का के पूर्व यह नगरी नागराजाओं की राजधानी रहकर स्मरण कर आकाश मार्ग से जाते हुए अपना विमान जैन धर्म का बड़ा केन्द्र बनी हुई थी । भगवान रोका और ध्यानमग्न प्रभु पर भंयकर आँधी के साथ पार्श्वनाथ विहार करते हुए इस नगरी में पधारे, तब मूसलधार पानी व ओले वर्षा कर घोर उपसर्ग करने यहाँ के वन में ध्यानावस्था में रहते वक्त मेघमाली लगा । प्रभु इस रोमांचकारी उपसर्ग से तनिक भी (कमठ) द्वारा उपसर्ग हुआ था । विचलित न होकर ध्यान में मग्न रहे । पूर्व भव के विक्रम की छठी शताब्दी में यहाँ के गुप्तवंशी राजा नाग, नागिनी जिन्हें मरणासन्न अवस्था मे भगवान हरिगुप्त ने दीक्षा अंगीकार की थी-ऐसा आचार्य श्री पार्श्वनाथ ने सर्व विघ्नहारी नवकार महामंत्र सुनाया उद्योतनसूरीश्वरजी द्वारा रचित "कुवलयमाला" में । ___ था, जिसके प्रभाव से नाग-नागिन मरकर स्वर्ग में वर्णन है । धरणेन्द्रदेव व पद्मावती देवी बने थे, उन्होंने स्वर्ग से कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रचार्य ने अहिच्छत्र का उल्लेख तत्काल आकर पूर्वभव के उपकारी प्रभु के शीशपर करते हुए इसका दूसरा नाम “प्रत्यग्रथ" भी बताया है। विशाल फण मण्डप की रचना करके कमठ के उपसर्ग को विफल किया । मेघमाली अपनी भूलपर पश्चात्ताप विक्रम की चौदहवीं सदी में आचार्य श्री करता हुआ प्रभु के चरणों में आकर क्षमा मांगने लगा। जिनप्रभसूरीश्वरजी ने यहाँ श्री पार्श्वनाथ भगवान के दे क्षमावान प्रभु का तो किसी के प्रति बैर था ही मन्दिर, किले के निकट श्री नेमिनाथ भगवान की नहीं । प्रभु तो अपने ध्यान में मग्न थे । अधिष्ठायिका श्री अम्बादेवी की प्रतिमा व विभिन्न प्रकार (दि. मान्यतानुसार प्रभु को उसी समय केवलज्ञान प्राप्त की औषधियों युक्त वन, उपवन आदि रहने का हुवा । श्वे. मान्यतानुसार केवलज्ञान बनारस में हुआ "विविध तीर्थ कल्प" में उल्लेख किया है । बताया जाता है।) भूगर्भ से कुषाणकालीन व गुप्तकालीन अनेकों प्रभु पर श्री धरणेन्द्र देव व श्री पद्मावतीदेवी द्वारा प्राचीन स्तूप, प्रतिमाएँ, स्तम्भ आदि प्राप्त हुए है, जो यहाँ फण मण्डप की रचना होने के कारण इस नगरी यहाँ की प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं । यहाँ के का नाम अहिच्छत्र पड़ा माना जाता है । टीलों व खण्डहरों की, जो मीलों में फैले हुए हैं, खुदाई 132
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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