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श्री पद्मप्रभ भगवान (श्वे.) कौशाम्बी
श्री कौशाम्बी तीर्थ
तीर्थाधिराज * श्री पद्मप्रभ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्य लगभग 30 सें. मी. (श्वे मन्दिर) । श्री पद्मप्रभ भगवान (दि. मन्दिर ) ।
तीर्थ स्थल * यमुना तट पर बसे गढ़वा कोशल इनाम गाँव से एक कि. मी. दूर ।
प्राचीनता इस तीर्थ की प्राचीनता का इतिहास श्री पद्मप्रभ भगवान के समय से प्रारम्भ होता है ।
श्री पद्मप्रभ भगवान का च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुआ। प्रभु के प्रथम समवसरण की रचना देवकुबेर द्वारा यहीं की गई । (दिगम्बर मान्यतानुसार प्रभु की दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक यहाँ की उपनगरी पभोषा के मनोहर उद्यान में हुआ माना जाता है ।)
गंगा नदी में भारी बाढ़ आने के कारण जब हस्तिनापुर नगरी का प्रलय हुआ, उस समय राजा परीक्षित् के उत्तराधिकारियों ने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया था । वत्सदेश की राजधानी बनने का इसको सौभाग्य मिला था । आवश्यक सूत्र में कौशाम्बी नगरी यमुना नदी के किनारे रहने का उल्लेख है ।
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आर्य सुहस्तिसूरीश्वरजी और आर्य महागिरिसूरीश्वरजी आदि अनेकों प्रकाण्ड आचार्यगण इस तीर्थ में दर्शनार्थ पधारे। उस समय यहाँ अनेकों मन्दिर रहे होंगे ।
पाँचवीं सदी में चीनी यात्री फाहियान ने भी अपनी नोंध में इस नगरी का वर्णन किया है ।
श्री हेमचन्द्राचार्य ने भी "त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र" में यहाँ का वर्णन किया है। चौदहवीं शताब्दी में आचार्य श्री जिनप्रभसूरीश्वरजी द्वारा रचित "विविध तीर्थ कल्प" में इस तीर्थ का उल्लेख है । वि. सं. 1556 में पं. हंससोम विजयजी यहाँ आये तब यहाँ के मन्दिर में 64 प्रतिमाएँ रहने का उल्लेख हैं। सं. 1661 में विजयसागरजी व सं. 1664 में श्री जयविजयगणी आये तब दो मन्दिर रहने का उल्लेख हैं। सं. 1747 में पं. सौभाग्यविजयजी ने यहाँ एक जीर्ण मन्दिर रहने का उल्लेख किया है । यहाँ भूगर्भ से अनेकों प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो प्रयाग म्यूजियम में रखे हुए हैं ।
किसी समय की विराट नगरी कालक्रम से आज एक छोटे से गाँव में परिवर्तित हो गई। राजा शतानिक की महारानी सती मृगावती द्वारा बनाया हुआ किला ध्वंस हुआ पड़ा है, जो प्राचीनता की याद दिलाता है । कहा जाता है इस किले का घेराव चार मील का या व 32 दरवाजे थे, जिसकी 30-35 फुट ऊँची दीवारे ध्वस्त हुई दिखाई देती हैं । इस मन्दिर का अन्तिम जीर्णोद्धार कुछ वर्षों पूर्व हुवा था । प्राचीन प्रतिमा को कोई क्षति पहुँचने के कारण या और कोई कारणवश नई प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई गई जो अभी मूलनायक रूप में विधमान है ।
विशिष्टता * श्री पद्मप्रभ भगवान का व्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक होने का सौभाग्य इस पवित्र भूमि को मिला है। अतः यहाँ की मुख्य विशेषता है ।
भगवान महावीर का भी इस नगरी के साथ घनिष्ट संबंध रहा है । भगवान महावीर केवलज्ञान प्राप्ति के पूर्व भी इस नगरी में विचरे हैं ।
यहाँ का राजा शतानीक प्रभु का परम भक्त था । शतानीक की रानी सती मृगावती (वैशाली के राजा चेटक की पुत्री) ने अपने पुत्र उदयन को राज्यभार संभलाकर प्रभुवीर के पास दीक्षा ग्रहण की थी ।