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________________ श्री प्रभाषगिरि तीर्थ तीर्थाधिराज * श्री पद्मप्रभ भगवान, बादामी वर्ण, पद्मासनस्थ लगभग 75 सें. मी. (प्राचीन मूलनायक) (दि. मन्दिर)। तीर्थ स्थल * यमुना नदी के तट पर बसे छोटे से पभोषा गाँव में एक पहाड़ी पर । प्राचीनता * दिगम्बर मान्यतानुसार छठे तीर्थंकर श्री पद्मप्रभ भगवान की दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक इस पावन भूमि में हुए हैं । किसी समय यह स्थल कौशाम्बी नगरी का एक उद्यान था । ई. सं. पूर्व के शिलालेख यहाँ प्राप्त हुए हैं । प्रतिमा भी ई. पूर्व शताब्दी की मानी जाती हैं । कहा जाता है एक वक्त कौशाम्बी के पुजारी को स्वप्न में संकेत मिला कि पास के कुएँ में पद्मप्रभ भगवान की अतिशयकारी प्राचीन प्रतिमा है, इसे निकालकर उचित स्थान पर मन्दिर में विराजमान किया जाय । स्वप्न के आधार पर अनुसंधान करने से प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसे इस मन्दिर में विराजमान करवाया गया । __पहाड़ के एक हिस्से के गिर जाने से मन्दिर को क्षति पहुँची थी, लेकिन प्रतिमाओं को कोई क्षति नहीं पहुँची । वही प्राचीन अलौकिक प्रतिमा अभी भी विद्यमान हैं । हाल ही में मन्दिर का जीर्णोद्धार हुवा तब नवीन प्रभु प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई गई । विशिष्टता * दिगम्बर मान्यतानुसार श्री पद्मप्रभ भगवान ने यहाँ के उद्यान में दीक्षा ग्रहण करके तपश्चर्या करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया था । अतः जिस भूमि में प्रभु ने दीक्षा ग्रहण करके वहीं तपश्चर्या करते हुए केवलज्ञान पाया हो उस पवित्र भूमि की महानता अवर्णनीय हैं । यह भी एक किवदन्ति है कि द्वारका नगरी भस्म होने पर श्री कृष्ण व बलराम भ्रातागण इस उद्यान में आये थे । एक समय श्री कृष्ण पहाड़ पर इस उद्यान में पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे । उस समय जरत्कुमार द्वारा चलाया गया बाण अचानक श्री कृष्ण के पैर में लगने के कारण श्री कृष्ण यहीं पर स्वर्ग सिध गरे थे । एक किंवदन्ती के अनुसार यह घटना महाराष्ट्र में मांगी-तुंगी पहाड़ पर घटकर वहाँ स्वर्ग सिधारें थे ऐसा कहा जाता है । श्री पद्मप्रभ भगवान प्राचीन मूलनायक (दि.)-प्रभोषा 110
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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