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________________ प्रकाशकीय जन चेतना ने केवलमात्र ज्ञान को ही आदर्श नहीं माना, उसने आदर्श माना है तो चारित्र सम्मत ज्ञान को। यथार्थ में ऐसा ज्ञान ही स्व पर संकट का मोचन करता है। आज का सबसे बड़ा संकट हैचारित्रिक शिथिलता का है। व्यक्ति की दृष्टि अर्थ प्रधान हो गई है। वह अपने अर्थ और स्वार्थ को ही चाहता है, उसकी प्राप्ति के लिए वह सबकुछ करने को तैयार हो जाता है जो उसकी मानवता को भले ही नामंजूर हो। मानवीय मूल्यों की सुरक्षा एकमात्र चारित्रिक सुदृढ़ता से हो सकती है। हमारा चारित्र जब तक पवित्र नहीं होता है तब तक सारी बातें निःसार है। ___ हमें बड़ी प्रसन्नता है कि हमारे आराध्य प्रवर जन-जन की आस्था के केन्द्र परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर पूज्य श्री विजयराज जी म.सा. जिन्होंने कड़ी मेहनत कर चारित्र निर्माण की पूरी सर्वांगीण रूपरेखा के साथ जो प्रणयन किया है वो अपने आप में अद्भुत है। हम ही नहीं पूरी मानव जाति आचार्य श्री के प्रति ऋणी है जिन्होंने ऐसा अभूतपूर्व अवदान प्रदान करके सच्चे अर्थों में अपने संतत्व को सुरक्षित रखते हुए उपकृत किया है। आचार्य श्री जी के विचारों को सहेजने के कार्य को किया है विश्रुत विद्वान् श्री शांतिचन्द्र जी मेहता सा. ने। मेहता सा. पूज्य आचार्य श्री गणेशीलाल जी म.सा., पूज्य आचार्य श्री नानालाल जी म.सा. तथा वर्तमान आचार्य श्री के विचारों के प्रति पूर्णतः श्रद्धान्वित रहे हैं। यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि श्रीमान् मेहता सा. का अचानक देहावसान हो गया। उनका वरदहस्त हमारे संघ पर पूरी सद्भावनाओं के साथ बना हुआ था, मगर काल की गति विचित्र है, क्या किया जाए? हम मेहता सा. के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस ग्रंथ के प्रकाशन में गरिमा ऑफसेट के मालिक प्रबुद्ध पत्रकार श्री रामप्रसाद जी कुमावत तथा उनके सहयोगियों के प्रति भी आभार ज्ञापित करते हैं। अच्छे मुद्रण, लग्नशीलता तथा श्रद्धेय आचार्य प्रवर के प्रति श्रद्धान्वितता के प्रति हम उनके सदैव ऋणी रहेंगे। इस ग्रंथ के प्रकाशन का अर्थ सौजन्य इंदौर के प्रसिद्ध दलाल परिवार की ओर से स्व. श्री बापूलाल जी, श्री अनोखीलाल जी, श्री हस्तीमल जी दलाल खातरोड़ (म.प्र.) वालों की पुण्य स्मृति में प्रदान कर सहयोग दिया गया। आप आचार्य श्री जी के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित हैं। दलाल परिवार हमारे संघ को समय-समय पर इसी तरह का साहित्यिक सहयोग प्रदान करता रहेगा, ऐसा हमें विश्वास है। अंत में पाठकों से अपेक्षा है कि वे चरित्र निर्माण के अभियान में अपने तन-मन-जीवन से जुड़कर इसे आगे गति प्रदान करें। शेष शुभ। धर्मीचन्द कोठारी शांतिलाल कोठारी अध्यक्ष महामंत्री श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी शांति क्रांति जैन श्रावक संघ, उदयपुर VII
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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