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________________ सुचरित्रम् (4) सभी क्षेत्रों में पूर्ण स्वतंत्र बने तथा स्वतंत्रता का अन्यतम विस्तार करें। आप किस प्रकार के मानव बनना पसन्द करेंगे? : ___ मानव जीवन को चार प्रकार की श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है(1) एक मानव जीवन वह है जो चरित्र एवं सदाचार के स्वरूप को जानता, पहचानता तो है, परन्तु न सदाचार का आचरण करता है और न ही चरित्रशील बनने का प्रयत्न। (2) दूसरा वह है जो सदाचार का आचरण तो करता है, परंतु चरित्र एवं सदाचार का सम्यक स्वरूप __ भली-भांति नहीं जानता है। उसका आचरण, ज्ञान विहीन है। (3) तीसरा वह है जो सदाचार के स्वरूप को अच्छी तरह से जानता, पहचानता है तथा तदनुसार आचरण भी करता है। (4) चौथा मानव जीवन वह है कि जो न तो सदाचार का सही स्वरूप जानता, पहचानता है और न सदाचार का आचरण ही करता है। वह ज्ञानहीन भी है और आचरणहीन भी है। मानव जीवन के इन चार प्रकारों में केवल तीसरे प्रकार का मानव जीवन ही सार्थक एवं सर्वश्रेष्ठ है जो मानवता के ज्ञान एवं चरित्र दोनों से सुसंपन्न है। जीवन में किसी भी प्रकार की सफलता और मुख्य रूप से भावनात्मक एवं आध्यात्मिक सफलता उसी मानव को प्राप्त होती है, जिसके पास ज्ञान के नेत्र हों और आचरण के पैर, फिर उसके मानवता को आत्मसात् करने के पथ की बाधा कोई भी शक्ति नहीं बन सकती। मानवता एवं चरित्रशीलता एक दूसरे के साध्य और साधन होते हैं। और जो मानव इन सद्गुणों से अपने जीवन को सजा लेता है, उसका व्यक्तित्व असाधारण प्रभाव का धनी बन जाता है। व्यक्ति और व्यक्तित्व का संबंध फूल और सुगंध के संबंध जैसा है। एक डाल पर गुलाब का फूल खिलता है तो उसकी भीनी-भीनी सुगंध चारों ओर फैल जाती है और आने-जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित करती है। वह गुलाब अपने सौन्दर्य एवं माधुर्य का उन्मुक्त भाव से वितरण करता है। वह सिर्फ देना चाहता है, अपने लिये कुछ भी बचाता नहीं। तो यही गुलाब का व्यक्तित्व होता है। इसी प्रकार परिवार, ग्राम, नगर, राष्ट्र या किसी भी संघ या संगठन की डाली पर मानों मानवता से युक्त एक मानव का जीवन पुष्पित होता है तो उसके चरित्रशील जीवन की सुगंध उसके क्षेत्र में चारों ओर फैलती है और वह जनजन के मन को श्रेष्ठ सुगंध से आप्लावित करके लोकप्रिय बन जाता है। त्याग जितना प्रगाढ़ होगा उतना ही उसका व्यक्तित्व सर्वजनहितकारी भी होगा तो सर्वजनप्रियकारी भी। देना, त्यागना, न्यौछावर करना, विसर्जित होना-ये सब मानवतापूर्ण व्यक्तित्व के लाक्षणिक चिह्न हैं। मन से ही मनुष्य है जो वरदान भी है तो अभिशाप भी बन सकता है : मनुष्य का मन एक चपल अश्व के समान होता है जो चलता या दौड़ता नहीं, हवा से बातें करता है। अश्व तीव्रगामी है तो फिर अश्वारोही का भी उतना ही कुशल होना अनिवार्य है। अगर घुड़सवार उतना ही तेजतर्रार न हुआ तो क्या नतीजा होगा, आप समझ सकते हैं? सवार काठी पर मजबूती से 38
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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