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________________ सुचरित्रम् पहिये की दरांतों से जुड़ते हुए चलते रहते हैं और नियमित समय बताने की क्रिया करते हैं। जो खूबी है वह है इन पहियों के दरांतों की। जुड़ने वाले पहियों के दरांते अगर आपस में ठीक से जुड़ते हुए चलते रहते हैं तो घड़ी में कोई खराबी नहीं आती। इसकी जगह अगर किसी भी एक पहिये का सिर्फ एक ही दरांता मेलजोल की जमावट से बाहर निकल जावे तो वह साथ के पहिये के दरांते से टकरा जाएगा और उस एक दरांते की टक्कर के साथ ही एक-एक करके सभी पहियों के सभी दरांतें आपस में टकरा कर टूट जाएंगे और घड़ी बन्द हो जाएगी। घड़ी के उदाहरण को विश्व की व्यवस्था के साथ घटित करें तो यह सत्य उभर कर सामने आएगा कि विश्व के अनेक संगठनों तथा व्यक्ति-व्यक्ति के बीच संतुलन बढ़ता जाएगा और सामंजस्य बढ़ता रहेगा तो विश्व-व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहेगी। दरांता तीखा होता है और उसी तरह तीखा होता है व्यक्ति का दंभ 'इगो', जो विभिन्न संस्थाओं तथा विश्व-व्यवस्था के माध्यम से प्रकट होता रहता है। दरांतों की तरह इगो अगर मेल-जोल के साथ व्यवस्था की घड़ी में फिट हो जावे तो सब कुछ ठीक चलेगा। लेकिन अगर इगो आपस में टकराने लगे तो सर्वत्र विवाद पैदा होंगे, द्वन्द सामने आएंगे और कटुता के साथ वैर-विरोध की आग भड़कने लगेगी। यही कारण है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए लोकतंत्रीय प्रणाली से मुक्त संपर्क की कड़ियां जुड़ी हुई रखी जाए तो व्यवस्था में कांटें पैदा नहीं होंगे। ऐसी व्यवस्था की स्थायी सुचारुता के लिये चरित्र निर्माण को गति देनी होगी, चरित्र के प्रति निष्ठा जगानी होगी एवं चरित्र संपन्नता की दिशा में बढ़ना होगा।
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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