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सुचरित्रम्
अराजकता की परिस्थिति सामने आती है। ऐसी अवस्था में सच्चरित्र व्यक्तियों का सत्प्रयास आवश्यक हो जाता है। शान्ति तथा सहयोग का मार्ग है मुक्त सम्पर्क, स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र : ___ छोटे से आकार व प्रकार के संगठनों से लेकर यदि बड़े से बड़े आकार व प्रकार के संगठनों के बीच मुक्त एवं अबाधित संपर्क रहे तो विभिन्न संगठनों तथा उनसे जुड़े व्यक्तियों के बीच सहयोग का वातावरण बनता है। यह सहयोग सभी प्रकार का हो सकता है और आदान-प्रदान की इस प्रवृत्ति से जुड़ाव स्थायित्व ग्रहण करता है। इससे दो प्रकार के लाभ होते हैं। पहला यह कि नीचे से लेकर ऊपर तक के व्यवस्था क्रम को भली प्रकार समझने का मौका सभी स्तरों पर सभी को मिलता है और वे व्यवस्था क्रम को दृढ़ता प्रदान करते हैं। दूसरे, इस प्रकार के गहरे संपर्क से सहमति की वैचारिकता का विकास होता है तथा संबंधित व्यक्तियों में दायित्व की भावना के साथ शुद्ध नैतिकता का प्रसार होता है जिससे अव्यवस्था एवं अराजकता के खतरों की आशंका नहीं रहती।
सबसे बढ़कर लाभ यह होता है कि सामान्य लोगों में चरित्र की शक्ति इस प्रकार समुन्नत होती जाती है जो पदस्थ लोगों के लिये एक कारगर अंकुश का काम देती है। समस्त समाज या कि शनैः शनैः सकल विश्व में चरित्र संपन्नता का सुदृढीकरण एक हकीकत बनकर सामने आ सकता है। यह सुदृढ़ीकरण ही स्थायी शान्ति एवं सहयोग का मार्ग प्रशस्त करता है। विश्व व्यवस्था में ऐसी परिस्थितियां स्थिर बन जाती है कि व्यक्ति का विकास एवं समाज का अभ्युदय व्यवस्थित रीति से निरन्तर चलता रहे। ___ यहां यह समझ लेना जरूरी है कि जहां व्यक्तिगत जीवन में आदर्श को प्राप्त कर लेना दुस्साहस भले हो, पर असाध्य नहीं होता, वहां सामूहिक जीवन में आवश्यक होता है कि आदर्श हमेशा सामने रहे तथा उस ओर गति करते रहने की प्रेरणा मिलती रहे। आशय यह कि आदर्श को समग्र रूप से प्राप्ति सामूहिक जीवन में संभव नहीं। यही हकीकत विश्व के साथ भी समझी जानी चाहिये। कभी यह संसार पूरी तरह बदल जाएगा और सुख-समृद्धि व शांति में स्वर्ग का रूप ले लेगा-यह आशा से अधिक नहीं। किन्तु आशा बनी रहे तो प्रबुद्ध एवं त्यागी कार्यकर्ताओं का शुभ परिवर्तन के लिये उत्साह बना रहता है और सामान्य जन भी अधिकाधिक संख्या में उनसे प्रभावित होकर अपनी जीवनचर्या तदनुसार ढालते रहते हैं। इसका यह असर होता है कि विश्व की व्यवस्था, उसके अनुशासन तथा व्यक्ति की नैतिकता एवं क्षमता का स्तर ऊपर से ऊपर उठता रहता है अथवा कम से कम इतना तो स्तर बन ही जाता है कि समाज के कंटक तत्त्व कहीं भी अव्यवस्था का वातावरण न बना सकें।
यह उपलब्धि साधारण नहीं होती, लेकिन इसकी प्राप्ति सहज नहीं तो असाध्य भी नहीं। इस उपलब्धि के लिये इस दृष्टि से सतत प्रयास किया जाए-यह सर्वथा जरूरी माना जाएगा। एक सतत सक्रिय अभियान चरित्रनिर्माण की दिशा में चलाये जाने का यही लक्ष्य रहना चाहिये।
इसी लक्ष्य को थोड़ा और स्पष्ट कर दूं। उच्चतम आदर्श की ओर गति तथा उस की प्राप्ति व्यक्ति के ही सामर्थ्य में है। किन्तु उसका मार्ग सहज बनाया जा सके तो कम सामर्थ्य वाले व्यक्ति
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