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________________ सुचरित्रम् अर्थ है कि जीवन में हमने सब कुछ खो दिया-यदि चरित्र गया तो सब कुछ गया। (If character is lost every thing is lost)। चरित्रहीनता का जीवन मात्र अभावों का जीवन रह जाता है। अतः चरित्रशील बनना जीवन को सार्थक बनाने का मूल उपाय है। जो चरित्र निर्माण करके उससे सम्पन्न बन जाता है, उसका एक ही मूल स्वभाव बन जाता है। वह सिर्फ देता है और देना ही जानता है। उसका धन और उसकी शक्ति दूसरों के लिए होती है। दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के लिए उसकी तलवार कभी भी म्यान से बाहर नहीं निकलती है। उनका मानस दया औ करुणा से आप्लावित रहता है, भला उसकी तलवार की नोक दूसरे के कलेजे को कैसे चीर सकती है? किन्तु समय पड़ने पर वह दीन, असहाय तथा अनाथ जनों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी दे सकता है। देने के लिए वह अपने प्राणों का भी मोह नहीं करता है। ___ जब चरित्रशील पुरुष देना ही देना चाहता है तो उसके चरित्र में इतनी शक्ति समाहित हो जाती है कि वह किसी भी असंभव को संभव बना दे। चरित्र निर्माण अभियान के सहभागियों को ऐसी शक्ति का आभास लेना चाहिए। यह सज्जन शक्ति और चरित्र निर्माण का पथिक इस शक्ति की प्राप्ति के लिए सदा प्रयासरत रहता है। मानव जीवन को प्राप्त कर लेना ही सब कुछ नहीं है, उसकी सफलता तभी है जब मानवोचित सद्गुणों को जीवन में उतार लिया जाए तथा अपने को चरित्र सम्पन्न बना लिया जाए। यह अभियान इस दृष्टि से सबके सहयोग का पात्र कहा जा सकता है, क्योंकि यह सर्वजन में चरित्र निर्माण की प्रेरणा फूंकना चाहता है तथा जो इसके सहभागी हैं उनके चरित्र को ऊंचाई तक पहुंचा देना चाहता है। ये दोनों कार्य एक दूसरे के पूरक हैं। चरित्र निर्माण को प्रोत्साहन देना, अपने ही जीवन को उत्थान की दिशा में मोड़ना है। 534
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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