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सुचरित्रम्
अनिवार्यता रहती है-यही अन्योन्याश्रितता या परस्परता है। अतः 'स्व' को जितना अधिक 'पर' से जोड़ा जाएगा उतना ही व्यवस्था का तालमेल अच्छा बैठेगा तथा बढ़ता हुआ भाईचारा समाज-समता तथा विश्व-कुटुम्बकम् की दिशा में अग्रसर बनाएगा। ___15. व्यवस्थाओं के सड़ेपन को बारीकी से देखो : चरित्र निर्माण का सीधा सादा अर्थ है कि चरित्रहीनता मिटे, अशुभता दूर हो और ये बुराइयाँ नीचे से ऊपर तक की सभी व्यवस्थाओं में इतनी गहराई तक फैल चुकी है कि जब तक इन व्यवस्थाओं के सड़ेपन का बारीकी से अध्ययन नहीं किया जाएगा तब तक चरित्र निर्माण का एक पग भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकेगा। सड़ेपन को समझने के साथ ही यह भी आकलन करना होगा कि जन साधारण में इस विकृति के विरुद्ध कितना आन्दोलनात्मक भाव है, क्योंकि इसके आधार पर चरित्र निर्माण अभियान को अधिक सशक्त बनाया जा सकेगा। जन समर्थन का सम्बल सबसे बड़ी बात है। ___16. सामाजिक न्याय के लिए लड़ो, मानवीय मूल्यों को उठाओ : चरित्र पतन का प्रधान कारण होता है सामाजिक अन्याय और सामाजिक अन्याय से क्षरित होते हैं मानवीय मूल्य। मानवीय मूल्यों के अभाव में नैतिकता खत्म होती है और स्ल्ध मनुष्य राक्षसी रूप अपना लेता है। अतः अन्याय कहीं भी सहन नहीं किया जाना चाहिए। कहा गया है कि अन्याय करने वाले से भी उसका अधिक दोष और अपराध उस पर है जो अन्याय को चुपचाप सहता है अथवा सहते हुए लोगों को चुपचाप देखता है। यों चरित्र दोष जिम्मेदारी कई वर्गों पर रहती है। अन्याय से पग-पग पर कठिन संघर्ष किया जाए तथा उसके अस्तित्व को निर्मूल बनाया जाए। इसके लिए दुतरफी कोशिश होनी चाहिए। एक ओर तो विचार क्रांति फैलाई जाए ताकि अन्याय सहने वाले जागें और उसका प्रतिरोध करें। दूसरी ओर समाज में ऐसा व्यवहार पनपाया जाए कि प्रत्येक व्यक्ति सदा दूसरों के लिए पहले विवेकवान् रहे। धर्म के क्षेत्रों में भी ऐसी ही जागृति फूटनी चाहिए। तब कहीं जाकर चरित्र निर्माण के अनुकूल वायुमंडल की रचना हो सकेगी तथा मानवीय मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा संभव बनेगी। ___17.मन, वचन, कर्म को जोडो, अहिंसक जीवनशैली बनाओ : सज्जनता और दुर्जनता का प्रधान भेद यही है कि मन, वचन, कर्म की एकता वाला सज्जन और भिन्नता वाला दुर्जन। वह व्यक्ति जो जैसा सोचता है, वैसा ही बोलता है तथा जैसा सोचता व बोलता है, वैसा ही करता है. सज्जन इसलिए कहा गया है कि वह निश्छल, सरल और सौम्य होता है और सबका सहायक बनता है जबकि दुर्जन की तीनों वृत्तियां भिन्न-भिन्न होती हैं जिनके प्रयोग से वह सब जगह कपटाचार फैलाता है। मायावी किसी का भी सगा नहीं होता। चरित्र निर्माण की पहली शर्त है कि मन, वचन, कर्म में समरूपता हो। इस समरूपता के अनुसार जब सम्पूर्ण जीवनशैली अहिंसा पर आधारित की जाएगी तो व्यक्ति से लेकर विश्व तक में समता की लहरें तरंगित होने लगेगी। __18. लक्ष्य बनाओ कि एक भी आंख में आंसू न रहे : चरित्र निर्माण साध्य भी है तो साधन भी। साधन इस दृष्टि से कि व्यक्तियों तथा व्यवस्थाओं का चरित्र उस स्तर तक पहुंचे जहां से स्नेह, संवेदना एवं सहकारिता की धारा बहे और दलित, शोषित तथा पिछड़े वर्ग भी अन्याय मुक्त होकर खुशहाल बन जाए। अतः चरित्र निर्माण की प्रक्रिया के साथ यह लक्ष्य भी निर्धारित किया जाए कि
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