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चरित्रबल से ही घूमेगा शुभंकर परिवर्तन का चक्र
आदर्श संकल्पों से ही नव समाज की स्थापना
बौद्ध साहित्य का यह कथानक है। भारत में एक ऐसा
सम्राट था जिसके राज्य की सीमाओं पर भयंकर वन प्रदेश फैला हुआ था जहां पर हिंसक वन्य पशुओं की दहाडों और गर्जनाओं से आस पास के क्षेत्र बरी तरह से आतंकित रहते थे। इस संदर्भ में वहां एक विचित्र प्रथा बन गई थी कि कोई भी राजा अपने सिंहासनारोहण के बाद केवल पांच वर्ष तक ही शासन कर सकता था। पांच वर्ष की अवधि समाप्त होने पर बडी धमधाम और समारोह के साथ उस राजा और रानी को राज्य की सीमा पर स्थित उस वन प्रदेश में छोड़ दिया जाता था, जहां हिंसक वन्य पशु उनकी जीवन लीला समाप्त कर देते थे। __ऐसी विचित्र प्रथा के चलते एक बार एक राजा को जब उस राज्य का सिंहासन मिला तो जनता ने शानदार उत्सव मनाया और उसकी जय-जयकार के नारे लगाए। किन्तु राजा जब अपने महल की छत से सीमावर्ती वन प्रदेश को निहारता तो उसका मन बुरी तरह आतंकित हो उठता और पांच वर्ष की अवधि पूरी होने पर सामने आने वाली अपनी दुर्दशा की बात सोच कर कांप उठता। वन प्रदेश को निहारना और मन ही मन सिहरते रहना, उसका
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