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________________ सुचरित्रम् 486 लिए अन्तराभिमुखी बनकर विचार करें । अन्तराभिमुखी विचार हमारे भीतर विवेक को जागृत करेगा। आप परमात्म तत्त्व की शक्ति को पहचानें, अपनी आत्मशक्ति को तोलें और अपने लिए नवजागरण का वातावरण बनावें, जिसमें से नव जागरण की प्रेरणा सबको भी प्राप्त हो सकेगी। भीतरबाहर स्वस्थता, जागरूकता एवं कर्मठता को जागृत बनाने के कुछ ध्यान सूत्र 1. मैं स्वस्थ हूँ, स्व में स्थित हूँ, तन-मन जीवन से प्रसन्न हूँ... ऐसा प्रतिक्षण चिन्तन करें, अनुभव करें और कर्त्तव्य शक्ति को जगावें । 2. मेरी आन्तरिक शक्ति आत्म-बल सदा सन्नद्ध है, मेरा कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है - इसका मनन सदा करते रहें । 3. मैं निर्भय हूं, अज्ञात भय एवं भयंकर आशंकाओं से मैं मुक्त हूँ-व्यावहारिक जीवन में इस सत्य का साक्षात्कार करते रहें । 4. मैं अनन्त शक्ति का स्वामी हूँ मेरी शक्ति सदा लोककल्याण में लगी रहे- मन में यह भावना - प्रवाद सदा चलता रहे। 5. मैं सर्वतंत्र एवं स्वतंत्र हूँ, मेरी स्वतंत्रता प्रत्येक प्राणी की स्वतंत्रता जगाने और दिलाने में सहायक बने- ऐसी हार्दिक अनुभूति लेते रहें । 6. मैं मानव जाति की एकता का समर्थक हूँ, इस एकता से विश्व सधे और समूची व्यवस्था समता में ढले - अन्तरंगता की गहराइयों में इसे उतारें । 7. आत्मा ही आत्मा की मित्र है और आत्मा ही आत्मा की शत्रु-मेरी आत्मा सदा मेरी मित्र बनी रहे और समस्त आत्माओं को अपनी मैत्री के बंधन में बांधे, इसे अवचेतन मस्तिष्क में जमावें । 8. मैं संसार की समस्त ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि का स्वामी हूँ, किन्तु उसकी आसक्ति से भी दूर रहूँ- ऐसा ज्ञान करें। 9. समस्त दिव्य शक्तियाँ मेरी आत्मा में विद्यमान हैं और उनका प्रयोग-उपयोग सदा परोपकार में करूँ - यह संकल्प बनावें । 10. संसार में जितनी भी श्रेष्ठताएं हैं, वे सब मेरे में हैं। संसार में जो महानताएं हैं वे सब मेरे मनमानस में हैं। मैं सृष्टि का सुन्दरतम उपहार हूँ, श्रेष्ठतम वरदान हूँ, किन्तु चरित्र निर्माण की प्रक्रिया से इन श्रेष्ठताओं को साकार रूप दूं-ऐसा निश्चय बनाते रहें । 11. मेरे विचार सदा सकारात्मक एवं क्रियात्मक रहें, उनमें कभी नकारात्मक, निराशा या कुंठा का प्रवेश न हो। मैं यह नहीं कर सकता कि ऐसी दुर्बलता कभी न जागे । यह कभी न सोचें मैं सब कुछ कर सकता हूँ, कुछ भी मेरे लिए असंभव नहीं। मैं अनन्त शक्ति का स्रोत हूँ। मैं अनन्त ज्ञान, दर्शन, चरित्र से सम्पन्न भव्यात्मा हूँ इसे दृढ़ आत्मविश्वास के साथ प्रत्यक्ष करते रहें । 12. सुदेव, सुगुरु एवं सुधर्म की अनन्त कृपा वृष्टि मेरे पर हो रही है, मैं अनुगृहीत हो रहा हूँ, उससे मैं पवित्र, शुद्ध, निर्मल एवं उज्जवल हो रहा हूँ-इन आल्हादक भावों का अन्तर्मन में संचार महसूस करें।
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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