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________________ सुचरित्रम् आपको भलीभांति समझ सकता है-जो एक को जान लेता है, वह सबको जान लेता है। 4. सम्पर्कगत संसार अर्थात् परिवार, समाज, राष्ट्र आदि के साथ व्यक्ति के तालमेल का मार्ग : व्यक्ति अकेला नहीं रहता, अन्य लोगों के बीच में रहता है तथा अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति भी वह स्वयं अकेला नहीं कर सकता है सभी के सहयोग से उसका काम बनता है। अभिप्राय यह कि वह अन्याश्रित होता है और इसी से परस्परता की स्थिति पैदा होती है। अपनेअपने सम्पर्क का संसार हरेक का छोटा-बड़ा हो सकता है किन्तु परोक्ष सम्पर्क के नाते तो पूरा विश्व ही सबके साथ संवेदना, सहानुभूति एवं सहयोग की भावनाओं के साथ सदा जुड़ा हुआ रहना चाहिए। 5. मानव मूल्यों के सर्जन एवं संरक्षण का मार्ग : चरित्रशीलता मनुष्य को भावनात्मक रीति से इतना सशक्त बना देती है कि वह अपने चारित्रिक गुणों के आधार पर देशकाल की परिस्थितियों के अनुसार नये मानव मूल्यों का सर्जन कर सकता है, उनकी ग्रहणशीलता को विस्तार दे सकता है तथा प्रतिपादित मानव मूल्यों का संरक्षण इस प्रकार से सुनिश्चित कर सकता है कि वे मूल्य आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहे। ऐसी सर्जक शक्ति चरित्र सम्पन्नता की अमूल्य उपलब्धि होती है। 6. पर्यावरण एवं प्राणी मात्र के संरक्षण का मार्ग : यह विश्व केवल मनुष्य की ही बपौती नहीं है। इसमें छोटे-बड़े प्राणियों की अनगिनत प्रजातियों का भी निवास है और इन्हीं प्राणियों की उपस्थिति से ही मनुष्य का रक्षात्मक पर्यावरण बनता है। यदि यह पर्यावरण प्रदूषित होता है या नष्ट होता है जैसा कि आज हो रहा है तो मनुष्य जाति पर भी तरह-तरह की घातक विपत्तियां हावी होती है। अतः प्राणियों की रक्षा में मानव की सुरक्षा भी सम्मिलित है। चाहे वनवासी प्राणी हो या अन्य जलचर, नभचर आदि आज उनके रक्षण के लिए अनेक संगठन अच्छा कार्य कर रहे हैं जिससे अहिंसा वृत्ति का प्रसार साफ झलकता है। यह शुभ लक्षण है। 7.सकारात्मक जीवनशैली अपनाने का मार्ग : वैज्ञानिक सुख सुविधाओं तथा उपभोक्तावादी संस्कृति ने व्यक्तियों की आज की जीवनशैली को नकारात्मक एवं निरर्थक बना रखा है। स्वस्थ विकास के लिए जीवनशैली से बढ़ कर अन्य कोई सकारात्मक जीवनशैली नहीं। यह सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय है। 8. भ्रष्टता व दष्टता के दलन का मार्ग : अब अवतारवाद की धारणा से मनुष्य बहत आगे बढ़ गया है और वह अपनी आन्तरिक शक्ति की प्रखरता पर विश्वास करने लगा है। उसकी यह प्रखरता हिंसक नहीं, अहिंसक है तथा अहिंसा तथा हृदय-परिवर्तन के मार्ग से ही भ्रष्टता एवं दुष्टता का दलन करने में वह समर्थ बनना चाहता है। 9. सज्जनता एवं सहयोगिता के प्रोत्साहन का सामाजिक मार्ग : यह व्यक्ति के चरित्र की सर्वांगीण उन्नति का ही सुफल हो सकता है कि वह समाज में सज्जनता तथा सहयोगिता को सर्वत्र प्रचलित बना दे-'एक के लिए सब और सबके लिए एक' का आत्मीय सूत्र क्रियान्वित हो जाए। 10. सबमें एक और एक में सबकी अनुभूति लेने का मार्ग : मानव चरित्र का यह उन्नति 482
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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