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________________ सुचरित्रम् तब उस चाल का चलन कैसे हो-यह भी निश्चित करना होगा : __ चीन के ताओवाद के मूलग्रन्थ ताओ-ते-चिंग में कहा गया है-'तुम नम्र बनो तो सदा पूर्ण बने रहोगे, तुम झुक जाओ तो हमेशा सीधे रह सकोगे, तुम खाली हो जाओ तो रोज भरे हुएं रहोगे और तुम पुराने पन को पहने हुए रहो तो सदा नये बने रहोगे।' यह चरित्र निर्माण की बुनियादी बात है। चरित्र निर्माण कहे या आत्म-संयम का अभ्यास, कर्त्तव्य निष्ठा कहें या धर्माराधना-सर्वत्र एक ही धिना है कि सद्गुणों को ग्रहण करो, व्यक्तित्व की सफलता का वरण करो और लोक कल्याण के मार्ग पर चरण धरो। ऐसा मार्ग जो बताते हैं, वे महाजन कहलाते हैं तथा महाजन प्रत्येक युग में सद्गुणाधारित आचरण के द्वारा सार्वजनिक 'चाल' (मार्ग) का प्रतिपादन करते हैं और उसका जब 'चलन' अर्थात् प्रचलन लोकप्रिय होता है तो वह सब चाल-चलन (केरेक्टर) का आधार बन जाता है। वर्तमान युग में कैसी चाल बने-इसकी चर्चा ऊपर की गई है जिसका सार यह है कि आज के विश्रृंखल विश्व तथा विभ्रमित व्यक्ति के जीवन में सन्तुलन, समन्वय एवं शुद्ध-शुभ जीवन की ष्टि तभी की जा सकती है जब समूची व्यवस्था तथा व्यक्ति की चर्या में अहिंसक जीवनशैली का समावेश हो। यह शैली ही आज की विभिन्न विविधताओं तथा विषमताओं के बीच सहनशीलता एवं एकता की स्थापना कर सकती है, जिसे आज 'बहुमान्यतावाद' (प्लूरिज्म) कहा जाता है। आज इस अहिंसक जीवनशैली को अपनाने के अलावा अन्य कोई प्रभावी उपाय नहीं जो व्यक्ति से लेकर विश्व तक में जीवन निर्माण का नया अध्याय प्रारम्भ कर सकती हो। तो इस 'चाल' का 'चलन' कैसे हो-इस निश्चयीकरण के लिए इसी ग्रन्थ के अगले सातवें खण्ड में पूरे विस्तार के साथ विचार किया जाएगा तथा व्यावहारिक दृष्टि से आयोज्य अभियान आदि की रूपरेखा दी जाएगी। अभी यहां तो उस व्यावहारिक योजना के सैद्धान्तिक पक्ष पर ही संक्षिप्त में चर्चा की जा रही है। अहिंसक जीवनशैली की मूल धारणा यह है कि सभी धर्म, सभी वाद और सभी विचारधाराएं तथा यहां तक प्रत्येक व्यक्ति की धारणाएं ध्यान में ली जानी चाहिए, ससम्मान उनकी अच्छाईयों को ' सामने लाना चाहिए तथा उन सबके आधार पर एक समन्वित विचार परिपाटी का सूत्रपात किया जाना चाहिए। 'मेरी ही मान्यता, मेरा ही विश्वास अथवा मेरा ही धर्म श्रेष्ठतम् है'-इस हठाग्रह का यह शैली पूर्ण विरोध करती है। इस शैली की यह एक अच्छाई ही एकता का वातावरण रच सकती है क्योंकि यह सबको महत्त्वपूर्ण मानती है और सबको विकास प्रक्रिया में सम्मिलित करना चाहती है। इस अहिंसा का सिद्धान्त पक्ष इतना सुदृढ़ है जो अपनी सुरक्षा में प्रत्येक मानव ही नहीं, जीव तक को अपने जीवन के प्रति निश्चिन्त बना सकती है। यदि मानव को केवल अपने जीवन की सुरक्षा की गारंटी दे दी जाए तो कल्पना नहीं की जा सकती है कि जीवन के अन्यान्य क्षेत्र में कितनी सार्थक प्रगति वह कर सकता है। दिग्ध निकाय (बौद्ध धर्म ग्रन्थ) में कहा है-"यह सृष्टि चक्र तुम्हारी (किसी की) बपौती नहीं है। तुम स्वयं दूसरों का भला करो, जैसा कि मैंने किया तो तुम भी इस चक्र के नियन्ता बन सकते हो। धर्म और कर्त्तव्य के आदर्शों के अनुसार अपना आचरण बनाओ, जो तुम्हारे सामने महापुरुषों ने रखा है। तुम उस आदर्श का सम्मान करोगे, प्रसार करोगे तथा स्वयं उसका पालन करोगे तो तुम स्वयं भी उस आदर्श के ध्वजवाहक बन सकोगे। तुम भी उस आदर्श के प्रतीक 480
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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