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________________ सुचरित्रम् 476 परिपालना निर्दोष रीति से किया करते हैं, ऐसे धर्म शूर महापुरुष ही मुक्ति मार्ग के सच्चे पथिक होते हैं ( सच्चारित्र समायुक्ताः शूराः मोक्षपथे स्थिताः- तत्वामृत ) । सच्चारित्रता का आचरण करके ही अपने कुल को पवित्र बनाओ (कुलं पवित्रीकुरू सच्चारित्रतः - उपदेश ग्रंथ माला) । पवित्र चरित्र वाले महापुरुष बिना आभूषणों के भी अत्यन्त सौन्दर्यशील दिखाई देते हैं (निरस्तभूषोऽपि यथा विभाति पवित्र चारित्र विभूषितात्मा - सुभाषित रत्न संदोह ) । जब पुरुष का कषाय शान्त हो जाता है तभी वह पवित्र चरित्र को प्राप्त कर सकता है (यदा कषायः शममेति पुंसस्तदा चरित्रं पुनरेति पूतम् - सुभाषित रत्न संदोह ) । शरीरधारियों की सर्वत्र रक्षा करने वाला महामंत्र चरित्र ही है (संयमो हि महामंत्रस्त्राता सर्वत्र देहिनः - तत्वामृत ) । सम्यक् चरित्र के अभाव में दया, दान आदि सब निष्फल होते हैं - ऐसा जानकर महापुरुष सम्यक् चरित्र में यत्नशील होते हैं (व्यर्थाश्चरित्रेण विना भवन्ति ज्ञात्वेह सन्तश्चरिते यतन्ते सुभाषित रत्न संदोह ) । अब चरित्र को चरित्र कहें, संयम कहें या धर्म कहें - सब एक ही बात है और इस बात के बने बिना नया मनुष्य नहीं बन सकेगा और ये मनुष्यों के समूह नहीं होंगे तो उनमें से महाजन कहां से प्रकट होंगे? चरित्रशीलता के बिना महानता अस्तित्व में नहीं आती है - यह स्थापित सत्य है । आज के मनुष्य को भी नये चरित्र के साथ अपनी नई चाल बनानी होगी : नयापन सबको भाता है। चाहे प्रतिदिन रात आती है, वह बीतती है और प्रभात का उदय होता है, फिर भी प्रत्येक नव प्रभात पूरी दुनिया में नई हलचल, नई उमंग, नई कर्मनिष्ठा को अवश्य जगाता है । वह कितना स्थायित्व पाती है - यह कई कारणों पर निर्भर करता है। नये वर्ष का भरपूर उत्साह से स्वागत किया जाता है तो किसी भी नई शुभ - सुखद घटना को समारोहपूर्वक मनाते हैं। किसी भी क्षेत्र में नयापन सब पसन्द करते हैं, किन्तु फिर भी यह अवस्था क्यों है कि मनुष्य स्वयं नया बनने के लिए उत्साहित नहीं है और सर्वत्र नये पन को स्थायी बनाने के प्रयास नहीं करता है? यह मात्र अज्ञान है। जैसे अंधेरे में जब रास्ता बिल्कुल नहीं दिखाई देता है तो कोई बलिष्ठ व्यक्ति भी चलना बन्द करके बैठ जाता है, उसी प्रकार आज बहुसंख्यक लोग अज्ञान के वशीभूत होकर न अपने अस्तित्व को पहचानते हैं और न ही अपनी कर्मशक्ति को जानते हैं। एक बार जो उन्हें सोते से उठा दिया जाए, उनके चरित्र में प्रेरणा भर दी जाए, चारों ओर की कठिन परिस्थितियों में उसको उसकी इच्छाशक्ति से परिचित करा दिया जाए तो कोई सन्देह नहीं कि आज का पिछड़ा दबा मानव भी क्रान्ति की करवट ले, अवश्य उठ खड़ा होगा फिर उसे आदर्श नेतृत्व चाहिए वह कहीं रुकेगा नहीं । मनुष्य अबोध है, उसकी मनुष्यता लुप्त नहीं है- केवल उसे थपथपाकर जगाने की जरूरत है। उसे समझाने की जरूरत है कि ज्ञान का कैसा प्रकाश उसे चाहिए और चरित्र का कैसा प्रभाव वह वे । इसके लिए आज के मनुष्य या आगे आने वाले महाजन को नया मार्ग रचने के लिए अपनी खुद की एक नई चाल बनानी ही होगी ताकि वह नये चलन के रूप में सर्वत्र प्रचलित हो जावे । इसे चाल-चलन का रहस्य मानिए। नई चाल क्या उपादेय रहे और क्या हेय, इसे वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में अपने सोच विचार से निर्णित कीजिए। इसमें कोई विवाद नहीं कि प्राचीनकालीन साहित्य में इससे संबंधित भरपूर सामग्री है और उसका पूरा सदुपयोग किया जाना चाहिए किन्तु
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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