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________________ सुचरित्रम् जाता है। किसी एक युग की बात नहीं, प्रत्येक युग में पुरुष का निर्माण होता है, महापुरुष बनता है, वह मार्ग बनाता है और नये उत्साह के साथ पुन: जन-जन उस मार्ग पर चल पड़ता है। महापुरुष द्वारा चाल बताना और उस पर चल कर पुरुषों द्वारा उस चाल का चलन बढ़ाना, यह विकृतियों एवं विषमताओं से उपजे पतन के बाद अवश्य घटित होता है। अभिप्राय यह कि महाजन प्रत्येक युग में स्वतंत्रता तथा मुक्ति की ओर जाते हुए पथ बनाते हैं और विश्व उस पथ का प्रचलन करता है ताकि सामान्य जन सरलतापूर्वक उस पथ पर चलकर उन्नति की साधना कर सके। ___ वर्तमान युग में सभी ओर कितना भी पतन हो गया हो या हो रहा हो, निराशा या कुंठा का भाव कभी नहीं आना चाहिए और प्रबुद्ध पुरुषों को चरित्र निर्माण, सुव्यवस्था स्थापना तथा सर्वांगीण उन्नति के लिए उत्साहपूर्वक प्रयत्न करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए क्योंकि महापुरुषत्व उन्हीं में छिपा हुआ है। चरित्र निर्माण नहीं होगा तो कहां से आऐगे नये मनुष्य और महाजन : ___आधुनिक युग की यह सबसे बड़ी विडम्बना कही जाएगी कि विकास का क्षेत्र हो या विज्ञान का क्षेत्र, शासन-प्रशासन की बात हो या शिक्षण-प्रशिक्षण की, सर्वत्र पर्याप्त विकास हुआ है और विज्ञान ने तो सुरखाब के पंख लगा लिए, लेकिन नहीं हुआ तो वही जो इन सबसे ऊपर सबसे बड़ा काम था। उद्योग लगे और विभिन्न उत्पादनों में तेजी और बहुलता आई। बड़े-बड़े बांध बने और अनाज आदि कृषि उत्पाद प्रचुरता में पैदा किए जाने लगे। यों भौतिक क्षेत्रों में विज्ञान द्वारा निर्मित सुख सुविधा के उपकरणों की अनगिनत किस्में सामने आई। बाहर के देहसुख-साधनों की बाढ़-सी आ गई लेकिन एक हकीकत पर ध्यान नहीं गया सो अब तक भी रचनात्मक रूप से नहीं जा रहा है। क्या है वह काम और बड़ी बात? यह काम और बात है-मानव चरित्र का निर्माण। दूध के भरे हुए कड़ाह में यदि नींब का रस डाल दिया जाए तो क्या दध फटने से बचेगा? सारा बाहर का विकास हो और भीतर पुरी तरह पिछड़ा हो तो क्या होगा परिणाम? वही जो आज सब ओर देखा जा रहा है। सारे विकास का चाक-चाक कर रही है मनुष्य की चरित्रहीनता। __जब तक मनुष्य का चरित्र निर्माण नहीं होता है यानी कि भावनात्मक, गुणात्मक एवं मूल्यात्मक रूप से नये मानव का निर्माण नहीं होता है तब तक कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि चरित्रहीन मनष्य सारी व्यवस्था को सार्वजनिक हित की दष्टि से चलावे? कारण उसके पास सार्वजनिक हित की न तो दृष्टि होती है और न ही कार्य की इच्छाशक्ति । चरित्र के अभाव में उसकी अशुभ वृत्तियाँ ताकतवर बनी रहती हैं और उनके असर से मनुष्य की प्रवृत्तियाँ भी अधिकांश रूप से स्वार्थों, विकृतियों तथा विषमताओं से घिरी रह कर अशुभता को ही उकसाती हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने भारत की स्थिति पर बड़ी मार्मिक बात कही कि '1947 में आधी रात को देश की स्वतंत्रता की घोषणा हुई, लेकिन विडम्बना है कि आधी शताब्दी से ऊपर समय बीत जाने पर भी उस आधी रात का प्रभात अब तक नहीं आया है।' क्या है इस कथन का निचोड़? यही कि मानव चरित्र की उन्नति नहीं होने के कारण विकास के सारे प्रगति कारक आंकडों के बावजूद देश का सही विकास रत्ती भर भी नहीं हुआ है। गगनचुम्बी इमारतें बन जाने के बाद भी गंदी बस्तियों (स्लम्स) की संख्या सभी 474
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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