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________________ समूची समस्याओं का हल होगा मनुष्य की चाल व उसके चलन से उसे बोध दिया इन शब्दों के साथ कि प्रबोध पाओ, जागो, जागते क्यों नहीं हो? (संबुज्झह, किं न बुज्झह?) फिर चंडकौशिक ऐसा जागा कि सब कुछ बदल गया। वह प्रायश्चित्त की अवस्था में चला गया-फन बांबी में डाल दिया और बाकी शरीर बाहर। आते जाते लोग उसे देखते तो कई कहते-इसने मेरे अमुक संबंधी को मार दिया था और वे लाठियों, पत्थरों से उसके शरीर को मारतेपीटते तथा क्षत-विक्षत करते और कुछ ऐसे भी थे जो उसके चमत्कार के लिए दूध आदि से उसकी पूजा करते। परन्तु अब पुराना चंडकौशिक कहां रहा था-वह तो सहनशील और समभावी बन गया था-चोट और पूजा दोनों एक-सी हो गई थी उसके लिए। बलदेव श्री राम का समभाव अनुपम था-वे तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे। चौदह वर्षों के वनवास के दौरान जब श्री राम, सीता व लक्ष्मण पद विहार कर रहे थे तब शबरी भीलनी ने उनकी राह रोक कर अपनी कुटिया पर चलने का आमंत्रण दिया। श्री राम एक क्षत्रिय राजकुमार और शबरी शूद्र वर्ण की अस्पृश्य भीलनी। श्री राम के सिवाय शबरी के सदाशय को कौन पहचानता? वे उसकी कुटिया पर पहुंच गए और शबरी द्वारा दिए बेर खाने लगे। उन्हें ज्ञात हो गया था कि वे सारे बेर शबरी के जूठे थे, फिर भी बिना झिझक वे स्वाद ले लेकर बेर खाते रहे । शबरी ने इस सदाशय से एक-एक बेर अपने मंह से काट कर चखा था कि भगवान को कहीं खड़ा बेर न खाना पडे। जहां सदाशय. वहां समता। मर्यादाओं के तो प्रतीक थे श्री राम। भगवान् बुद्ध एक बार अपनी शिष्य मंडली के साथ एक ग्राम से दूसरे ग्राम की ओर विहार कर रहे थे। मार्ग में दूर से सबको दिखाई दिया कि एक मरे हुए कुत्ते का शरीर बुरी तरह से सड़ रहा है और उसकी दुर्गंध दूर तक भी असहनीय प्रतीत हो रही। विहार में कोई रुका नहीं, किन्तु अधिकांश भिक्षुओं ने चीवर वस्त्र से अपने नाक-मुंह ढक लिए। बुद्ध सब देख रहे थे, पर कुछ बोले नहीं। जब सब कुत्ते की लाश के पास से गुजर रहे थे तब बुद्ध उस स्थान पर रूके और भिक्षुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने इतना ही कहा-'देखो, इस कुत्ते की लाश के दांत कितने उजले और सुन्दर हैं?' तभी एक भिक्षु ने पूछा-'भन्ते! आपने दांत की बात कही, पर दुर्गंध की बात क्यों नहीं कही?' बुद्ध ने शान्त भाव से बताया-'हमें वही देखना, सुनना और लेना चाहिए जो ग्राह्य हो, अग्राह्य का ध्यान भी क्यों आवे?' शुभ के साथ अशुभ भी दिखता है, परन्तु अशुभ के प्रति घृणा या जुगुप्सा का भाव नहीं आना चाहिए। महात्मा गांधी के पास एक बार एक व्यक्ति पहुंचा और कहने लगा-'बापू! एक व्यक्ति ने मेरे गाल पर एक चांटा मार दिया, उसके लिए मैं क्या करूं-यह आपसे पूछने के लिए आया हूँ।' गांधी जी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया-'जाओ और उसके सामने अपना दूसरा गाल भी कर दो।' वह व्यक्ति उछल पड़ा-क्या कहते हैं बापू?' एक तो उसने मेरे एक गाल पर चांटा मारने की नीचता की और आप उसके सामने अपना दूसरा गाल भी करने की सीख दे रहे हैं कि वह दूसरे गाल पर भी एक 471
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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