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समूची समस्याओं का हल होगा मनुष्य की चाल व उसके चलन से
आदर्श चरित्र ही महापुरुष की पहचान
भगवान् महावीर विहार करते हुए अनायास ही उस वन
"प्रदेश में प्रविष्ठ हो गए, जहां विषधर नाग चंडकौशिक का उत्पात चल रहा था। उस वन प्रदेश के आस पास के अनेक ग्राम चंडकौशिक के विष के प्रभाव क्षेत्र में आते थे। जिस ओर भी वह विषधर नाग फुकार मारता था, विष की नीली ज्वालाएं निकलती, जो कई योजनों तक फैल जाती। उनकी चपेट में जो भी मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जीव आता, उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ता। महावीर के समक्ष भी वह समस्या आई, किन्तु वे निर्भयतापूर्वक चंडकौशिक की बांबी तक चले गए। नाग के क्रोध का पार नहीं था वह जोर-जोर से फुकारे मारने लगा, पर सब महावीर पर बेअसर। चंडकौशिक चौंका, किन्तु क्रोधित अधिक हुआ। वह आगे बढ़ा और उसने ध्यानस्थ महावीर के चरणों को डस लिया। किन्तु यह क्या? चरणों से रक्त तो बहा पर वह लाल नहीं, सफेद था और दूध से भी कई गना मधर। चंडकौशिक उस अलौकिक स्वाद से चकित हो उठा-इसलिए भी कि उसका क्रोध पूरी तरह शान्त हो गया था और वह पश्चात्ताप की आत्मालोचक भावधारा में बह चला था। महावीर ने उस समय अपने नेत्र खोले और
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