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________________ शोषण और उत्पीड़न मिटे बिना प्रेम कहां? प्रेम बिना समता कैसी? जिससे वे संकुचित घेरों में बंद हो गए हैं और विशाल दृष्टि से हीन बन कर पूरी मानव जाति के कल्याण के विषय में सोचने में असमर्थ हो गए हैं। एक ही सत्य सभी धर्मानुयायियों को सिखाया गया है और यदि वही सत्य अनुयायियों की कथनी व करनी से ओझल हों जाए तो उन धर्मों की सार्थकता पर क्या प्रश्न चिह्न नहीं लग जाएगा? अतः आज की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि समता स्थापना हेतु वांछित गुणों को अपनाने तथा तदनुसार चरित्र का निर्माण करने की दिशा में सभी देश, सभी संगठन, सभी धर्म और सभी प्रबुद्ध जन आगे आवें । समता योग्य कुछ प्रमुख गुण इस प्रकार हो सकते हैं 1. क्षमा : क्रोध को जीतने का सर्वोत्तम गुण । क्षमा के अनेक उदाहरण जैन, हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम के धर्मग्रंथों में मिलेंगे, जिनसे क्रोध की भीषणता और क्षमा की सार्थकता का परिचय मिलता है। 2. नम्रता : अहंकार को नम्रता के गुण से जीतें । 3. सरलता : कपटाचार को सरलता से ही समाप्त कर सकते हैं। 4. अपरिग्रह : लोभ लालसा पर सफल अंकुश लगता है। 5. करुणा: हिंसा के स्थान पर करुणा- दया से हृदय आप्लवित हो तो क्रूर भाव टिकेंगे ही नहीं । 6. प्रेम : घृणा को जीतने का प्रभावकारी गुण । 7. दान : किसी भी प्रकार का सही योगदान मानवों के सन्ताप को घटा या मिटा सकता है। 8. मैत्री : मित्रता की कोई सीमा नहीं होती । वैर नष्ट होता है तो मैत्री होती है जो समस्त प्राणिजगत् तक फैल सकती है। 9. संवेदना : हृदय की ऐसी तरलता का सुपरिणाम सहानुभूति और सहयोग में प्रकट होता है। 10. उदारता : हृदय और दृष्टि में विशालता प्रसारित हो । 11. उत्सर्ग : अपने आपका शुभ उद्देश्य हेतु बलिदान । सहमति से समता और समता से प्रेम की सरसता : असहमति के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं - यह आज की धार्मिक कट्टरपंथिता ने साफ कर दिया है । सारी दुनिया में इस्लाम को फैलाने का मंसूबा लेकर अलकायदा के ओसामा बिन लादेन ने जैसे अपना पैगाम दिया हो कि या तो इस्लाम को मंजूर कर लो या फिर मारे जाने के लिए तैयार रहो। इसका मतलब क्या हुआ? यही कि असहमति ने इतना घृणास्पद रूप बना लिया है जिसका एलान है - सिर्फ मेरा ही मजहब अच्छा है और दूसरे सारे मजहब बेकार हैं। यह धार्मिकता नहीं है, कोरी कट्टरपंथिता है। कट्टरपंथिता धार्मिक नहीं होती । कारण, वास्तविक धर्म कट्टरता के घेरे में कभी बंद नहीं होता है। वह तो बताता है कि ये सिद्धान्त हैं, इन्हें जांचों-परखों, उचित लगे तो मानो और के पहले अपने उसूल भी बता दो जिनके साथ इन सिद्धान्तों का समन्वय करने से शायद अधिक सच 467
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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